राजस्थान के अजमेर शहर में स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में लाखों लोगों की आस्था का केंद्र है। हर धर्म, जाति और संप्रदाय के लोग यहां माथा टेकते हैं और अपनी मुरादें लेकर आते हैं। इस दरगाह से जुड़ी कई मान्यताएं और परंपराएं हैं, लेकिन सबसे रहस्यमय और खास मानी जाती है- जन्नती दरवाजा, जो हर साल कुछ दिनों के लिए ही खुलता है।
जन्नती दरवाजा क्या है?
दरगाह शरीफ परिसर में स्थित यह दरवाजा पीतल और चांदी से बना है। इसे "जन्नती दरवाजा" यानी जन्नत का दरवाजा कहते हैं। मान्यता है कि जो भी इस दरवाजे से गुजरता है, उसकी मुरादें जरूर पूरी होती हैं और उसे जन्नत का रास्ता मिल जाता है। यह दरवाजा आम दिनों में बंद रहता है, लेकिन इसे सिर्फ उर्स के मौके पर और साल में कुछ खास मौकों पर ही खोला जाता है।
कब खुलता है यह दरवाजा?
जन्नती दरवाज़ा हर साल ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के उर्स यानी उनकी वार्षिक पुण्यतिथि के दौरान सात दिनों के लिए खोला जाता है। उर्स इस्लामी कैलेंडर के रजब महीने की पहली से छठी तारीख के बीच आयोजित किया जाता है, जो आमतौर पर फरवरी या मार्च में पड़ता है। इसके अलावा, यह दरवाज़ा कुछ विशेष इस्लामी अवसरों, जैसे ईद-मिलाद-उन-नबी, मुहर्रम या विशेष सूफी आयोजनों पर भी खोला जाता है।
मान्यता: यह दरवाज़ा क्यों खास है?
धार्मिक मान्यता है कि इस दरवाज़े से गुजरने वाला व्यक्ति आध्यात्मिक रूप से शुद्ध हो जाता है। ऐसा कहा जाता है कि ख्वाजा साहब ने खुद इस दरवाज़े का नाम "जन्नती दरवाज़ा" रखा था और इसे पार करना आध्यात्मिक शुद्धि का प्रतीक है। कई लोगों का मानना है कि इस दरवाज़े से गुजरने से पिछले जन्मों के पाप भी मिट जाते हैं और व्यक्ति को सुख, समृद्धि और आशीर्वाद की प्राप्ति होती है। यही वजह है कि जब यह दरवाज़ा खुलता है, तो बड़ी संख्या में श्रद्धालु कतार में लग जाते हैं और दरवाज़े को छूने और इससे गुज़रने का सौभाग्य प्राप्त करते हैं।
ऐतिहासिक महत्व
ऐतिहासिक दृष्टि से इस द्वार का निर्माण मुगल काल में हुआ था। दरगाह के कई हिस्सों का निर्माण मुगल शासकों ने करवाया था और इस विशेष द्वार को मुगल बादशाह जहांगीर के समय में पवित्र दर्जा मिला था। इसे "जन्नती दरवाजा" भी कहा जाता है क्योंकि ख्वाजा साहब के बताए मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति आत्मा की शांति और परम मोक्ष प्राप्त कर सकता है - यही सूफी संतों का संदेश भी है।
आधुनिक समय में भी अटूट आस्था
आज के आधुनिक और तकनीकी युग में भी जन्नती दरवाजे का महत्व कम नहीं हुआ है। जब भी यह द्वार खुलता है, अजमेर शरीफ में भीड़ उमड़ पड़ती है। दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं - कोई पैदल यात्रा करता है, कोई चादर लेकर आता है तो कोई फकीर के वेश में नजर आता है। कई नवविवाहित जोड़े, बुजुर्ग, बीमार लोग और युवा भी इस द्वार से गुजरते हैं ताकि उन्हें "स्वर्ग का मार्ग" मिल सके। उनका मानना है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई मुरादें कभी अधूरी नहीं रहतीं। आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव
कई तीर्थयात्रियों का कहना है कि जब वे जन्नती दरवाज़े से गुज़रते हैं, तो उन्हें एक अलग तरह की सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव होता है। वहाँ का माहौल, सूफ़ी संगीत, कव्वाली की आवाज़ें और प्रार्थना में डूबे लोग - सब मिलकर एक अलौकिक अनुभव देते हैं। यह सिर्फ़ एक दरवाज़ा नहीं, बल्कि एक प्रतीक है - उस आस्था का जो लोगों को जोड़ती है, उस भक्ति का जो दिल को सुकून देती है और उस उम्मीद का जो इंसान को हर मुश्किल से लड़ने की हिम्मत देती है।
निष्कर्ष
अजमेर शरीफ़ का जन्नती दरवाज़ा सिर्फ़ एक धार्मिक संरचना नहीं, बल्कि आस्था की जीती-जागती मिसाल है। यह दर्शाता है कि जब कोई इंसान पूरे दिल से किसी शक्ति पर विश्वास करता है, तो वह शक्ति उसकी ज़िंदगी बदल सकती है। हर साल जब यह दरवाज़ा खुलता है, तो अजमेर ही नहीं बल्कि पूरे देश और दुनिया से श्रद्धालु यहाँ उमड़ पड़ते हैं, जो साबित करता है कि आस्था की कोई सीमा नहीं होती। इसलिए अगर आपको कभी ज़िंदगी में कोई रास्ता न मिले, तो एक बार अजमेर शरीफ़ जाएँ और इस जन्नती दरवाज़े से गुज़रें - हो सकता है आपको भी वहाँ से एक नई रोशनी, एक नई राह मिल जाए।
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