News India Live, Digital Desk: The world Equation is changing : आजकल दुनिया की राजनीति में एक बड़ी हलचल देखने को मिल रही है। एक तरफ अमेरिका है, जो अपनी व्यापार नीतियों से दुनिया पर दबदबा बनाए रखना चाहता है, तो दूसरी तरफ भारत, चीन और रूस जैसे बड़े देश एक-दूसरे के करीब आ रहे हैं। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या ये तीनों देश मिलकर अमेरिकी प्रभुत्व को खत्म कर पाएंगे और दुनिया में एक नया शक्ति संतुलन बना पाएंगे?क्यों करीब आ रहे हैं ये तीन देश?इस नई दोस्ती की सबसे बड़ी वजह अमेरिका की तरफ से लगाए गए भारी-भरकम टैरिफ (आयात शुल्क) हैं। अमेरिका ने भारतीय सामानों पर 50% तक टैरिफ लगा दिया है, जिससे भारत के व्यापार पर असर पड़ रहा है। इसी तरह की नीतियों से चीन और रूस भी परेशान हैं। इस आर्थिक दबाव ने तीनों देशों को एक साथ आने पर मजबूर कर दिया है, ताकि वे मिलकर इसका कोई समाधान निकाल सकें।यह सिर्फ व्यापार की बात नहीं है, बल्कि यह अपनी अर्थव्यवस्था को अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता से बचाने की भी कोशिश है।रूस पर लगे पश्चिमी प्रतिबंधों के बाद, भारत और चीन ने स्थानीय मुद्राओं, जैसे रुपये और युआन में रूस से कच्चा तेल खरीदा। इससे डॉलर पर उनकी निर्भरता कम हुई और खुद के मुद्रा भंडार को मजबूती मिली।कितनी है इस तिकड़ी में ताकत?अगर इन तीनों देशों की ताकत को एक साथ जोड़कर देखें, तो तस्वीर काफी दिलचस्प नजर आती है।आर्थिक ताकत: इन तीनों देशों की कुल जीडीपी लगभग 54 ट्रिलियन डॉलर है, जो दुनिया की कुल अर्थव्यवस्था का लगभग एक तिहाई हिस्सा है।व्यापारिक शक्ति: ये तीनों देश मिलकर 5 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा का सामान निर्यात करते हैं और दुनिया के कुल विदेशी मुद्रा भंडार का लगभग 40% हिस्सा इनके पास है।सैन्य शक्ति: अगर रक्षा खर्च की बात करें तो तीनों देश मिलकर 549 बिलियन डॉलर से ज्यादा खर्च करते हैं, जो दुनिया के कुल रक्षा खर्च का 20% से भी ज्यादा है।चीन मैन्युफैक्चरिंग का बादशाह है, रूस के पास ऊर्जा के असीम भंडार हैं, और भारत सर्विस सेक्टर और एक बहुत बड़े बाजार के तौर पर अपनी अहमियत रखता है।इन तीनों की ताकत अगर मिल जाए, तो ये पश्चिमी देशों के बनाए व्यापारिक रास्तों को चुनौती दे सकते हैं।राह में मुश्किलें भी कम नहींहालांकि, यह गठबंधन जितना मजबूत दिखता है, इसकी राह में उतनी ही मुश्किलें भी हैं। भारत और चीन के बीच सीमा विवाद और आपसी भरोसे की कमी एक बहुत बड़ी चुनौती है। 2020 में गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद दोनों देशों के रिश्तों में कड़वाहट आई है, जिसे दूर करना आसान नहीं होगाभारत के लिए यह एक तरह से दोधारी तलवार पर चलने जैसा है। एक तरफ अमेरिका के साथ उसके गहरे आर्थिक रिश्ते हैं, जो भारत का सबसे बड़ा निर्यात बाजार है। दूसरी ओर, रूस और चीन के साथ मिलकर वह अपनी अर्थव्यवस्था को नए विकल्प देना चाहता है। ऐसे में भारत को बहुत संभलकर कदम उठाने होंगे, ताकि उसके अपने हितों को कोई नुकसान न पहुंचे।कुल मिलाकर, भारत, चीन और रूस का साथ आना दुनिया में एक बड़े बदलाव का संकेत है। यह तिकड़ी अमेरिकी दबदबे के लिए एक बड़ी चुनौती पेश कर सकती है, लेकिन इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि ये देश अपने आपसी मतभेदों को कैसे सुलझाते हैं और एक भरोसे का रिश्ता कैसे कायम करते हैं।
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