नई दिल्ली : बसों में लगती आग और लोकल बस बॉडी बिल्डरों द्वारा बस बनाने में घटिया मैटेरियल का इस्तेमाल करते देख केंद्रीय सड़क, परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने देशभर में एक सितंबर से नई बस बॉडी पॉलिसी लागू कर दी। लेकिन इसके बावजूद लोकल स्तर पर बस बॉडी बनाने वालों पर इसका कोई असर दिखाई नहीं दिया।
इसका ताजा उदाहरण जैसलमेर में 14 अक्टूबर को एसी स्लीपर बस में आग लगने से हुई 26 यात्रियों की दर्दनाक मौत है। जिसकी अभी तक की जांच में खुलासा हुआ है कि यह बस नई पॉलिसी बनने के बाद बनकर सड़क पर उतरी थी। इसके बावजूद इसके इमरजेंसी गेट, आग बुझाने के उपकरण और यात्री सुरक्षा के मामले में कई स्तर पर कमियां पाईं गईं। ऐसे में सवाल यही है कि नई पॉलिसी तो बना दी, लेकिन नियम तोड़ने वालों का क्या?
नियमों को सख्ती से लागू करने की कमी
इस पर ट्रांसपोर्ट एक्सपर्ट दिल्ली ट्रांसपोर्ट विभाग के पूर्व डिप्टी कमिश्नर और रोड सेफ्टी विशेषज्ञ अनिल छिकारा का कहना है कि सीधे तौर पर नियमों को सख्ती से लागू करने की कमी है। भारत सरकार ने नियम बना दिए, लेकिन राज्य सरकारों के संबंधित विभाग उसे सख्ती से लागू नहीं कर पाते। अगर जांच की जाए तो मुश्किल से पांच फीसदी बसों में फायर अलार्म और आग बुझाने के अन्य उपकरण सही मिलेंगे। इसके लिए एनफोर्समेंट सख्त होना चाहिए। बस मालिक के खिलाफ तो एक्शन हो ही, साथ ही उस लोकल बस बॉडी बिल्डर के खिलाफ भी सख्त से सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। जिसने नियमों को ताक पर रखते हुए लालच में बस बनाने में सुरक्षा नियमों को ताक पर रखा। साथ ही सरकार को इंटरसिटी परमिट कंडीशन लागू करनी चाहिए।
बसों की तीन-चार महीने में होनी चाहिए रूटीन जांच
ऑल इंडिया मोटर एंड गुड्स ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष राजेंद्र कपूर का कहना है कि बसों की हर तीन या छह महीने में रूटीन जांच तो होनी ही चाहिए। साथ ही इनका औचक निरीक्षण भी होना चाहिए। जो भी बस वाला नियम तोडता है। पहली बार में उसके उपर हैवी पेनल्टी और दूसरी बार नियम तोड़ने पर बस जब्त कर ली जाए। गाड़ियों में जो माल भरता है। उसके उपर भी यही सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। साथ ही अगर ऑडिट में कोई बस सब-स्टैंडर्ड पाई जाती है तो उसे ताउम्र सड़कों पर उतरने पर रोक लगा देनी चाहिए। बस ड्राइवर का भी लाइसेंस जब्त होना चाहिए। क्योंकि, जब बस ड्राइवर का लाइसेंस ही जब्त हो जाएगा तो फिर वह मालिक के कहने पर भी गलती नहीं करेगा।
सूत्रों का कहना है कि इस गंभीर मामले में केंद्र सरकार की तरफ से देश के हर राज्य को पत्र लिखकर बसों के मामले में जांच और नियम तोड़ने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के लिए भी कहना चाहिए। जैसलमेर मामले में तो संबंधित आरटीओ के उपर एक्शन होना चाहिए।
सितंबर से लागू हो चुका है न्यू बस बॉडी कोड
नई बस बॉडी कोड के बारे में मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि देशभर में यह न्यू बस बॉडी कोड पिछले महीने एक सितंबर से लागू हो चुका है। इसकी जानकारी हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश समेत देशभर में बस की चेसिस पर बॉडी बनाने वाले लोकल बस मेकर जिन्हें ट्रांसपोर्ट की भाषा में बस बॉडी बिल्डर कहा जाता है। इन्हें भी दे दी गई है। इसमें बताया गया है कि लोकल बस बॉडी बनाने वालों को भी वोल्वो, अशोक लीलैंड और टाटा जैसी ओरिजिनल इक्विपमेंट मैन्युफैक्चरर (OEM) कंपनियों की तरह सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए बस बॉडी बनानी होंगी।
अधिकारी ने बताया कि नई पॉलिसी में स्लीपर और चेयरकार बसों से लेकर हर तरह की बसों के लिए कायदे-कानून बनाए गए हैं। इसमें वेनिटी और इसी तरह की निजी स्तर पर इस्तेमाल की जाने वाली बसों को शामिल नहीं किया गया है।नई पॉलिसी के तहत बस की लंबाई और ऊंचाई के मुताबिक नियम लिखे गए हैं। इसमें यात्रियों की सुरक्षा के लिए इमरजेंसी गेट, आग लगने की स्थिति में आग बुझाने के लिए पूरी तरह से भरे हुए सिलेंडर, पैसेंजर साइड में हर शीशे के पास इमरजेंसी में बस से निकलने के लिए शीशा तोड़ने के लिए हथौड़ा, आग बुझाने के लिए जरूरत के मुताबिक अंदर पानी की लाइन, स्मोक डिटेक्टर, 360 डिग्री कवरेज करने वाले बेहतरीन सीसीटीवी कैमरे, जीपीएस कनेक्ट और ड्राइवर मॉनिटरिंग सिस्टम समेत 150 से अधिक सेफ्टी फीचर इस्तेमाल करने होंगे।
कैसी होनी चाहिए बस की बॉडी
बस की बॉडी ऐसी बनानी होगी। जिसमें चलते हुए बस में वाइब्रेशन बहुत अधिक ना हो। बस के अंदर और बाहर रंग-बिरंगी और आंखों में चुभने वाली लाइट नहीं लगा सकते, सीट बहुत हार्ड नहीं होनी चाहिए, बस के इंटीरियर में अत्यंत ज्वलनशील मैटेरियल का इस्तेमाल नहीं, अलार्म सिस्टम, बस की छत पर सामान नहीं रखा होना चाहिए। बस की छत और पीछे की तरफ भी इमरजेंसी गेट होंगे।
अगर बस के पीछे इंजन लगा होगा तो बस की साइड में इमरजेंसी गेट लगाना होगा। छत पर रखी बैटरी और सिलिंडरों के बीच इमरजेंसी गेट ऐसा बनाना होगा। ताकि लोगों द्वारा इमरजेंसी में निकलने पर उसमें लोग ना अटके।
कैसे बनी नई पॉलिसी
सूत्र बताते हैं कि बस हादसों को देखते हुए केंद्रीय सड़क, परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने बीच-बीच में कई बार बस बॉडी पॉलिसी में संशोधन करते हुए नया कोड बनाने की कोशिश की थी। लेकिन किन्हीं कारणवश यह नहीं हो पाया और लोकल बस बॉडी बनाने वालों को बस बॉडी बनाने में वैकल्पिक का विकल्प ही जारी रहा। जिसमें चंद लोकल बॉडी बिल्डर ही अच्छी बस बनाते थे। वरना, अधिकतर बस बॉडी बनाने में सब-स्टैंडर्ड सामान का इस्तेमाल कर रहे थे।
फिर 2023 में महाराष्ट्र में समृद्धि महामार्ग एक्सप्रेस पर एक बस में आग लगने से हुई 26 लोगों की मौत के बाद केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने इस तरफ कड़ा रुख अख्तियार करते हुए नई पॉलिसी बनाने पर काम करना शुरू कर दिया। जिसके लिए यूरोप के कुछ देशों की स्टडी भी कई गई और अंत में एक सितंबर 2025 को नई बस बॉडी पॉलिसी लागू कर दी गई।
इसका ताजा उदाहरण जैसलमेर में 14 अक्टूबर को एसी स्लीपर बस में आग लगने से हुई 26 यात्रियों की दर्दनाक मौत है। जिसकी अभी तक की जांच में खुलासा हुआ है कि यह बस नई पॉलिसी बनने के बाद बनकर सड़क पर उतरी थी। इसके बावजूद इसके इमरजेंसी गेट, आग बुझाने के उपकरण और यात्री सुरक्षा के मामले में कई स्तर पर कमियां पाईं गईं। ऐसे में सवाल यही है कि नई पॉलिसी तो बना दी, लेकिन नियम तोड़ने वालों का क्या?
नियमों को सख्ती से लागू करने की कमी
इस पर ट्रांसपोर्ट एक्सपर्ट दिल्ली ट्रांसपोर्ट विभाग के पूर्व डिप्टी कमिश्नर और रोड सेफ्टी विशेषज्ञ अनिल छिकारा का कहना है कि सीधे तौर पर नियमों को सख्ती से लागू करने की कमी है। भारत सरकार ने नियम बना दिए, लेकिन राज्य सरकारों के संबंधित विभाग उसे सख्ती से लागू नहीं कर पाते। अगर जांच की जाए तो मुश्किल से पांच फीसदी बसों में फायर अलार्म और आग बुझाने के अन्य उपकरण सही मिलेंगे। इसके लिए एनफोर्समेंट सख्त होना चाहिए। बस मालिक के खिलाफ तो एक्शन हो ही, साथ ही उस लोकल बस बॉडी बिल्डर के खिलाफ भी सख्त से सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। जिसने नियमों को ताक पर रखते हुए लालच में बस बनाने में सुरक्षा नियमों को ताक पर रखा। साथ ही सरकार को इंटरसिटी परमिट कंडीशन लागू करनी चाहिए।
बसों की तीन-चार महीने में होनी चाहिए रूटीन जांच
ऑल इंडिया मोटर एंड गुड्स ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष राजेंद्र कपूर का कहना है कि बसों की हर तीन या छह महीने में रूटीन जांच तो होनी ही चाहिए। साथ ही इनका औचक निरीक्षण भी होना चाहिए। जो भी बस वाला नियम तोडता है। पहली बार में उसके उपर हैवी पेनल्टी और दूसरी बार नियम तोड़ने पर बस जब्त कर ली जाए। गाड़ियों में जो माल भरता है। उसके उपर भी यही सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। साथ ही अगर ऑडिट में कोई बस सब-स्टैंडर्ड पाई जाती है तो उसे ताउम्र सड़कों पर उतरने पर रोक लगा देनी चाहिए। बस ड्राइवर का भी लाइसेंस जब्त होना चाहिए। क्योंकि, जब बस ड्राइवर का लाइसेंस ही जब्त हो जाएगा तो फिर वह मालिक के कहने पर भी गलती नहीं करेगा।
सूत्रों का कहना है कि इस गंभीर मामले में केंद्र सरकार की तरफ से देश के हर राज्य को पत्र लिखकर बसों के मामले में जांच और नियम तोड़ने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के लिए भी कहना चाहिए। जैसलमेर मामले में तो संबंधित आरटीओ के उपर एक्शन होना चाहिए।
सितंबर से लागू हो चुका है न्यू बस बॉडी कोड
नई बस बॉडी कोड के बारे में मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि देशभर में यह न्यू बस बॉडी कोड पिछले महीने एक सितंबर से लागू हो चुका है। इसकी जानकारी हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश समेत देशभर में बस की चेसिस पर बॉडी बनाने वाले लोकल बस मेकर जिन्हें ट्रांसपोर्ट की भाषा में बस बॉडी बिल्डर कहा जाता है। इन्हें भी दे दी गई है। इसमें बताया गया है कि लोकल बस बॉडी बनाने वालों को भी वोल्वो, अशोक लीलैंड और टाटा जैसी ओरिजिनल इक्विपमेंट मैन्युफैक्चरर (OEM) कंपनियों की तरह सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए बस बॉडी बनानी होंगी।
अधिकारी ने बताया कि नई पॉलिसी में स्लीपर और चेयरकार बसों से लेकर हर तरह की बसों के लिए कायदे-कानून बनाए गए हैं। इसमें वेनिटी और इसी तरह की निजी स्तर पर इस्तेमाल की जाने वाली बसों को शामिल नहीं किया गया है।नई पॉलिसी के तहत बस की लंबाई और ऊंचाई के मुताबिक नियम लिखे गए हैं। इसमें यात्रियों की सुरक्षा के लिए इमरजेंसी गेट, आग लगने की स्थिति में आग बुझाने के लिए पूरी तरह से भरे हुए सिलेंडर, पैसेंजर साइड में हर शीशे के पास इमरजेंसी में बस से निकलने के लिए शीशा तोड़ने के लिए हथौड़ा, आग बुझाने के लिए जरूरत के मुताबिक अंदर पानी की लाइन, स्मोक डिटेक्टर, 360 डिग्री कवरेज करने वाले बेहतरीन सीसीटीवी कैमरे, जीपीएस कनेक्ट और ड्राइवर मॉनिटरिंग सिस्टम समेत 150 से अधिक सेफ्टी फीचर इस्तेमाल करने होंगे।
कैसी होनी चाहिए बस की बॉडी
बस की बॉडी ऐसी बनानी होगी। जिसमें चलते हुए बस में वाइब्रेशन बहुत अधिक ना हो। बस के अंदर और बाहर रंग-बिरंगी और आंखों में चुभने वाली लाइट नहीं लगा सकते, सीट बहुत हार्ड नहीं होनी चाहिए, बस के इंटीरियर में अत्यंत ज्वलनशील मैटेरियल का इस्तेमाल नहीं, अलार्म सिस्टम, बस की छत पर सामान नहीं रखा होना चाहिए। बस की छत और पीछे की तरफ भी इमरजेंसी गेट होंगे।
अगर बस के पीछे इंजन लगा होगा तो बस की साइड में इमरजेंसी गेट लगाना होगा। छत पर रखी बैटरी और सिलिंडरों के बीच इमरजेंसी गेट ऐसा बनाना होगा। ताकि लोगों द्वारा इमरजेंसी में निकलने पर उसमें लोग ना अटके।
कैसे बनी नई पॉलिसी
सूत्र बताते हैं कि बस हादसों को देखते हुए केंद्रीय सड़क, परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने बीच-बीच में कई बार बस बॉडी पॉलिसी में संशोधन करते हुए नया कोड बनाने की कोशिश की थी। लेकिन किन्हीं कारणवश यह नहीं हो पाया और लोकल बस बॉडी बनाने वालों को बस बॉडी बनाने में वैकल्पिक का विकल्प ही जारी रहा। जिसमें चंद लोकल बॉडी बिल्डर ही अच्छी बस बनाते थे। वरना, अधिकतर बस बॉडी बनाने में सब-स्टैंडर्ड सामान का इस्तेमाल कर रहे थे।
फिर 2023 में महाराष्ट्र में समृद्धि महामार्ग एक्सप्रेस पर एक बस में आग लगने से हुई 26 लोगों की मौत के बाद केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने इस तरफ कड़ा रुख अख्तियार करते हुए नई पॉलिसी बनाने पर काम करना शुरू कर दिया। जिसके लिए यूरोप के कुछ देशों की स्टडी भी कई गई और अंत में एक सितंबर 2025 को नई बस बॉडी पॉलिसी लागू कर दी गई।
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