नई दिल्ली: भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। हालांकि, इसका एक भी बैंक दुनिया के टॉप 10 में शामिल नहीं है। शायद यह बात सरकार को अखर रही है। यही कारण है कि अब वह 'महा-बैंकों' को बनाने की तैयारी में जुट गई है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस बारे में मंशा साफ कर दी है। उन्होंने कहा है कि भारत को बड़े और विश्वस्तरीय बैंकों की जरूरत है। इस दिशा में सरकार भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) और बैंकों के साथ मिलकर काम कर रही है। उन्होंने वित्तीय संस्थानों से उद्योग जगत के लिए कर्ज का प्रवाह बढ़ाने की अपील की है। भरोसा जताया कि जीएसटी दरों में कटौती से मांग बढ़ेगी। इससे कुल मिलाकर निवेश में भी बढ़ोतरी होगी। वित्त मंत्री ने यह भी कहा कि सरकार बुनियादी ढांचे के निर्माण पर जोर दे रही है। इसके चलते पिछले दशक में पूंजीगत व्यय में पांच गुना बढ़ोतरी हुई है। उन्होंने आर्थिक आत्मनिर्भरता पर जोर देते हुए कहा कि इसका मतलब है कि देश अपनी समृद्धि खुद पैदा करे। इसमें खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा, एमएसएमई, कपड़ा और पर्यटन जैसे क्षेत्रों को बढ़ावा देना शामिल है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 12वें ‘एसबीआई बैंकिंग एंड इकॉनमिक्स’ सम्मेलन-2025 में कहा कि देश को बड़े और वैश्विक स्तर के बैंकों की जरूरत है। उन्होंने बताया कि इस संबंध में सरकार, आरबीआई और बैंकों के बीच बातचीत चल रही है। सीतारमण ने वित्तीय संस्थानों से उद्योग जगत के लिए कर्ज के प्रवाह को बढ़ाने और इसे और व्यापक बनाने का आग्रह किया। उन्होंने यह भी भरोसा जताया कि जीएसटी की दरों में कटौती से मांग बढ़ेगी और इससे कुल मिलाकर निवेश में भी बढ़ोतरी होगी। वित्त मंत्री ने सलाह दी कि वित्तीय संसाधनों तक पहुंच बहुत महत्वपूर्ण है। एक व्यवस्थित, पारदर्शी कर्ज प्रक्रिया की जरूरत है।
बड़े बैंक बनाने की है सरकार की मंशा वित्त मंत्री ने कहा, 'देश को कई बड़े और विश्वस्तरीय बैंकों की जरूरत है...। सरकार इस पर विचार कर रही है और काम शुरू हो चुका है। हम आरबीआई और बैंकों के साथ इस पर चर्चा कर रहे है।' उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि सरकार की ओर से कोई भी निर्णय लेने से पहले, बहुत सारा काम किया जाना बाकी है। इसमें आरबीआई से यह सुझाव लेना भी शामिल है कि वे बड़े बैंक कैसे बनाना चाहते हैं।
सीतारमण ने समझाया कि यह केवल मौजूदा बैंकों के विलय से नहीं हो सकता। उन्होंने कहा, 'यह मौजूदा बैंकों से सृजित करके... सिर्फ एकीकरण से नहीं हो सकता... यह एक रास्ता हो सकता है, लेकिन आपको एक ऐसा परिवेश और माहौल की जरूरत है जिसमें ज्यादा बैंक काम कर सकें और आगे बढ़ सकें। भारत में यह परिवेश वास्तव में अच्छी तरह से स्थापित है...।'
काफी समय से कोशिशों में लगी है सरकार
सरकार ने बड़े बैंक बनाने के अपने प्रयासों के तहत पहले भी दो बार बैंकों का एकीकरण किया है। बैंकिंग क्षेत्र में सबसे बड़े एकीकरण के तहत सरकार ने अगस्त 2019 में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के चार बड़े विलय की घोषणा की थी। इसके चलते बैंकों की कुल संख्या घटकर 12 रह गई, जो 2017 में 27 थी। 1 अप्रैल 2020 से यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया और ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स का पंजाब नेशनल बैंक में विलय कर दिया गया। इसी तरह सिंडिकेट बैंक का केनरा बैंक में और इलाहाबाद बैंक का इंडियन बैंक में विलय हुआ। इसके अलावा, आंध्रा बैंक और कॉरपोरेशन बैंक का यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में विलय किया गया।
इससे पहले, 2019 में देना बैंक और विजया बैंक का बैंक ऑफ बड़ौदा में विलय हुआ था। उसके पूर्व सरकार ने एसबीआई के पांच सहयोगी बैंकों और भारतीय महिला बैंक का भारतीय स्टेट बैंक में विलय किया था। यह कदम अप्रैल 2017 में एसबीआई को और बड़ा बनाने के इरादे से उठाया गया था।
निजीकरण की प्रक्रिया के तहत सरकार ने जनवरी 2019 में आईडीबीआई बैंक में अपनी 51 फीसदी नियंत्रक हिस्सेदारी भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) को बेच दी थी। इसके बाद सरकार और एलआईसी ने आईडीबीआई बैंक में अपनी हिस्सेदारी की रणनीतिक बिक्री की योजना की घोषणा की। वर्तमान में आईडीबीआई में हिस्सेदारी बिक्री की प्रक्रिया जारी है।
वित्त मंत्री सीतारमण ने यह भी बताया कि सरकार का मुख्य ध्यान बुनियादी ढांचे के निर्माण पर है। उन्होंने कहा कि पिछले दशक में पूंजीगत व्यय में पांच गुना बढ़ोतरी हुई है। राजकोषीय सूझबूझ का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए निरंतर आत्मनिर्भरता के सिद्धांत का पालन कर रही है कि राजकोषीय अनुशासन कभी खतरे में न पड़े।
2030 तक करना पड़ सकता है इंतजारइस कार्यक्रम में एसबीआई के चेयरमैन सी एस शेट्टी ने कहा कि भारत का सबसे बड़ा बैंक 2030 तक शीर्ष 10 वैश्विक बैंकों में शामिल हो जाएगा। उन्होंने बताया कि गुरुवार को एसबीआई का बाजार पूंजीकरण 100 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया। शेट्टी ने बैंकिंग क्षेत्र में सुधारों का जिक्र करते हुए कहा कि सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की सीमा को मौजूदा 20 प्रतिशत से बढ़ाकर 49 प्रतिशत करने पर विचार करना चाहिए।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 12वें ‘एसबीआई बैंकिंग एंड इकॉनमिक्स’ सम्मेलन-2025 में कहा कि देश को बड़े और वैश्विक स्तर के बैंकों की जरूरत है। उन्होंने बताया कि इस संबंध में सरकार, आरबीआई और बैंकों के बीच बातचीत चल रही है। सीतारमण ने वित्तीय संस्थानों से उद्योग जगत के लिए कर्ज के प्रवाह को बढ़ाने और इसे और व्यापक बनाने का आग्रह किया। उन्होंने यह भी भरोसा जताया कि जीएसटी की दरों में कटौती से मांग बढ़ेगी और इससे कुल मिलाकर निवेश में भी बढ़ोतरी होगी। वित्त मंत्री ने सलाह दी कि वित्तीय संसाधनों तक पहुंच बहुत महत्वपूर्ण है। एक व्यवस्थित, पारदर्शी कर्ज प्रक्रिया की जरूरत है।
बड़े बैंक बनाने की है सरकार की मंशा वित्त मंत्री ने कहा, 'देश को कई बड़े और विश्वस्तरीय बैंकों की जरूरत है...। सरकार इस पर विचार कर रही है और काम शुरू हो चुका है। हम आरबीआई और बैंकों के साथ इस पर चर्चा कर रहे है।' उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि सरकार की ओर से कोई भी निर्णय लेने से पहले, बहुत सारा काम किया जाना बाकी है। इसमें आरबीआई से यह सुझाव लेना भी शामिल है कि वे बड़े बैंक कैसे बनाना चाहते हैं।
सीतारमण ने समझाया कि यह केवल मौजूदा बैंकों के विलय से नहीं हो सकता। उन्होंने कहा, 'यह मौजूदा बैंकों से सृजित करके... सिर्फ एकीकरण से नहीं हो सकता... यह एक रास्ता हो सकता है, लेकिन आपको एक ऐसा परिवेश और माहौल की जरूरत है जिसमें ज्यादा बैंक काम कर सकें और आगे बढ़ सकें। भारत में यह परिवेश वास्तव में अच्छी तरह से स्थापित है...।'
काफी समय से कोशिशों में लगी है सरकार
सरकार ने बड़े बैंक बनाने के अपने प्रयासों के तहत पहले भी दो बार बैंकों का एकीकरण किया है। बैंकिंग क्षेत्र में सबसे बड़े एकीकरण के तहत सरकार ने अगस्त 2019 में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के चार बड़े विलय की घोषणा की थी। इसके चलते बैंकों की कुल संख्या घटकर 12 रह गई, जो 2017 में 27 थी। 1 अप्रैल 2020 से यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया और ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स का पंजाब नेशनल बैंक में विलय कर दिया गया। इसी तरह सिंडिकेट बैंक का केनरा बैंक में और इलाहाबाद बैंक का इंडियन बैंक में विलय हुआ। इसके अलावा, आंध्रा बैंक और कॉरपोरेशन बैंक का यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में विलय किया गया।
इससे पहले, 2019 में देना बैंक और विजया बैंक का बैंक ऑफ बड़ौदा में विलय हुआ था। उसके पूर्व सरकार ने एसबीआई के पांच सहयोगी बैंकों और भारतीय महिला बैंक का भारतीय स्टेट बैंक में विलय किया था। यह कदम अप्रैल 2017 में एसबीआई को और बड़ा बनाने के इरादे से उठाया गया था।
निजीकरण की प्रक्रिया के तहत सरकार ने जनवरी 2019 में आईडीबीआई बैंक में अपनी 51 फीसदी नियंत्रक हिस्सेदारी भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) को बेच दी थी। इसके बाद सरकार और एलआईसी ने आईडीबीआई बैंक में अपनी हिस्सेदारी की रणनीतिक बिक्री की योजना की घोषणा की। वर्तमान में आईडीबीआई में हिस्सेदारी बिक्री की प्रक्रिया जारी है।
वित्त मंत्री सीतारमण ने यह भी बताया कि सरकार का मुख्य ध्यान बुनियादी ढांचे के निर्माण पर है। उन्होंने कहा कि पिछले दशक में पूंजीगत व्यय में पांच गुना बढ़ोतरी हुई है। राजकोषीय सूझबूझ का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए निरंतर आत्मनिर्भरता के सिद्धांत का पालन कर रही है कि राजकोषीय अनुशासन कभी खतरे में न पड़े।
2030 तक करना पड़ सकता है इंतजारइस कार्यक्रम में एसबीआई के चेयरमैन सी एस शेट्टी ने कहा कि भारत का सबसे बड़ा बैंक 2030 तक शीर्ष 10 वैश्विक बैंकों में शामिल हो जाएगा। उन्होंने बताया कि गुरुवार को एसबीआई का बाजार पूंजीकरण 100 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया। शेट्टी ने बैंकिंग क्षेत्र में सुधारों का जिक्र करते हुए कहा कि सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की सीमा को मौजूदा 20 प्रतिशत से बढ़ाकर 49 प्रतिशत करने पर विचार करना चाहिए।
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