डोनाल्ड ट्रंप की टीम समझने लगी है कि भारत के मामले में सार्वजनिक बयानबाजी के बजाय निजी बातचीत में ज्यादा फायदा है। यही वजह है कि ट्रेड एडवाइजर पीटर नवारो ने खामोशी ओढ़ ली है, कॉमर्स सेक्रेटरी हॉवर्ड लुटनिक ने धमकी वाली भाषा छोड़ दी है और वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट चीन की रेयर अर्थ मिनरल्स पॉलिसी से निपटने के लिए भारत की मदद चाहते हैं।
सुधर रहे रिश्ते: हाल में ट्रंप और पीएम नरेंद्र मोदी के बीच तीन बार बात हुई- जन्मदिन की बधाई देने के लिए, गाजा समझौते को लेकर और फिर दिवाली पर। यह गर्मजोशी बनी रहे, इसके लिए व्यापार समझौता जरूरी है। भारत की तरफ से बताया गया कि बातचीत चल रही है। वहीं अमेरिका का बयान आया कि चर्चा उपयोगी रही है, लेकिन कुछ मुद्दों पर अब भी बात बनना बाकी है।
नई डिप्लोमेसी: ट्रेड डील पर अंतिम फैसला ट्रंप के हाथ में है। वह कैसे और कब इसकी घोषणा करते हैं, यह इस पर निर्भर करता है कि इससे उन्हें कितना राजनीतिक लाभ मिल सकता है। हाल में अमेरिकी राजदूत सर्जियो गोर ने भारत का दौरा किया। इस दौरान प्रोटोकॉल से जुड़े कई नियम टूटे। गोर ने अभी तक पद नहीं संभाला है, इसके बावजूद वह प्रधानमंत्री मोदी से लेकर तमाम वरिष्ठ अधिकारियों से मिले। यानी विदेश मंत्रालय नए दौर के लिए नई सोच दिखा रहा है। पुराने जमाने की डिप्लोमेसी अब काम नहीं आने वाली।
एक गड़बड़ी: गोर की भारत यात्रा सफल रही, लेकिन उसमें एक छोटी-सी गड़बड़ी भी हुई। रूस से तेल खरीद को लेकर भारतीय अधिकारियों ने गोर से जो भी कहा हो, गोर ने आगे ट्रंप से जो कहा हो और ट्रंप ने उसे जैसे भी समझा हो - लेकिन ट्रंप के बयान ने मामले को उलझा दिया। अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि पीएम मोदी ने रूस से तेल नहीं खरीदने का भरोसा दिया है। यहां कुछ ऐसा हुआ होगा- भारतीय अधिकारियों ने शायद कहा होगा कि भारत रूसी तेल की खरीद घटाने की कोशिश करेगा, गोर ने समझा होगा कि भारत ने कम तेल लेना शुरू कर दिया है और ट्रंप ने मान लिया होगा कि भारत ने रूसी तेल खरीदना बंद कर दिया है।
अमेरिका की जरूरत: गोर से जल्दी मुलाकात का मतलब साफ है- भारत चाहता है कि रिश्ते की पहचान असली कामों से बने, रोज की सुर्खियों से नहीं। भारत ने दिखाया कि वह अपने हितों को लेकर अडिग रह सकता है। उसका रवैया पाकिस्तान से बिल्कुल अलग है, जो चापलूसी की हद पर उतर आया है। अमेरिका भी बदलाव को महसूस कर रहा है। चीन ने रेयर अर्थ मिनरल्स के निर्यात पर सख्ती की तो स्कॉट बेसेंट ने कहा कि यह लड़ाई चीन बनाम पूरी दुनिया की है। इसका मतलब कि अमेरिका को मजबूत साझेदारों की जरूरत है।
सुधर रहे रिश्ते: हाल में ट्रंप और पीएम नरेंद्र मोदी के बीच तीन बार बात हुई- जन्मदिन की बधाई देने के लिए, गाजा समझौते को लेकर और फिर दिवाली पर। यह गर्मजोशी बनी रहे, इसके लिए व्यापार समझौता जरूरी है। भारत की तरफ से बताया गया कि बातचीत चल रही है। वहीं अमेरिका का बयान आया कि चर्चा उपयोगी रही है, लेकिन कुछ मुद्दों पर अब भी बात बनना बाकी है।
नई डिप्लोमेसी: ट्रेड डील पर अंतिम फैसला ट्रंप के हाथ में है। वह कैसे और कब इसकी घोषणा करते हैं, यह इस पर निर्भर करता है कि इससे उन्हें कितना राजनीतिक लाभ मिल सकता है। हाल में अमेरिकी राजदूत सर्जियो गोर ने भारत का दौरा किया। इस दौरान प्रोटोकॉल से जुड़े कई नियम टूटे। गोर ने अभी तक पद नहीं संभाला है, इसके बावजूद वह प्रधानमंत्री मोदी से लेकर तमाम वरिष्ठ अधिकारियों से मिले। यानी विदेश मंत्रालय नए दौर के लिए नई सोच दिखा रहा है। पुराने जमाने की डिप्लोमेसी अब काम नहीं आने वाली।
एक गड़बड़ी: गोर की भारत यात्रा सफल रही, लेकिन उसमें एक छोटी-सी गड़बड़ी भी हुई। रूस से तेल खरीद को लेकर भारतीय अधिकारियों ने गोर से जो भी कहा हो, गोर ने आगे ट्रंप से जो कहा हो और ट्रंप ने उसे जैसे भी समझा हो - लेकिन ट्रंप के बयान ने मामले को उलझा दिया। अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि पीएम मोदी ने रूस से तेल नहीं खरीदने का भरोसा दिया है। यहां कुछ ऐसा हुआ होगा- भारतीय अधिकारियों ने शायद कहा होगा कि भारत रूसी तेल की खरीद घटाने की कोशिश करेगा, गोर ने समझा होगा कि भारत ने कम तेल लेना शुरू कर दिया है और ट्रंप ने मान लिया होगा कि भारत ने रूसी तेल खरीदना बंद कर दिया है।
अमेरिका की जरूरत: गोर से जल्दी मुलाकात का मतलब साफ है- भारत चाहता है कि रिश्ते की पहचान असली कामों से बने, रोज की सुर्खियों से नहीं। भारत ने दिखाया कि वह अपने हितों को लेकर अडिग रह सकता है। उसका रवैया पाकिस्तान से बिल्कुल अलग है, जो चापलूसी की हद पर उतर आया है। अमेरिका भी बदलाव को महसूस कर रहा है। चीन ने रेयर अर्थ मिनरल्स के निर्यात पर सख्ती की तो स्कॉट बेसेंट ने कहा कि यह लड़ाई चीन बनाम पूरी दुनिया की है। इसका मतलब कि अमेरिका को मजबूत साझेदारों की जरूरत है।
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