नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव के दौरान नामांकन पत्र में सजा की जानकारी छिपाने को लेकर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि यदि कोई उम्मीदवार अपने नामांकन पत्र में किसी भी प्रकार की सजा या आपराधिक पृष्ठभूमि की जानकारी छिपाता है, चाहे बाद में ऊपरी अदालत उसे बरी कर दे, तब भी उसकी उम्मीदवारी रद्द की जा सकती है। जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस ए एस चंदुरकर की पीठ ने एक पूर्व पार्षद की अपील पर यह फैसला सुनाया। पार्षद को नामांकन पत्र में एक मामले में पिछली सजा का खुलासा नहीं करने की वजह से पद से हटा दिया गया था।
पूनम को मध्य प्रदेश के भीकनगांव नगर परिषद के पार्षद पद से हटा दिया गया था, क्योंकि उन्हें चेक बाउंस के एक मामले में दोषी ठहराया गया था। उन्होंने नामांकन पत्र में अपनी दोषसिद्धि का उल्लेख नहीं किया था। सुप्रीम कोर्ट में पूर्व पार्षद पूनम ने दावा किया कि उनकी दोषसिद्धि को हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया था और इसलिए उनके चुनाव को उस दोषसिद्धि के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता जो अब अस्तित्व में नहीं है। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि कोई गंभीर अपराध नहीं है या नैतिक पतन को नहीं दर्शाता है। ना ही चुनाव पर कोई सीधा प्रभाव पड़ता है।
जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस ए एस चंदुरकर की पीठ ने याचिकाकर्ता की याचिका को खारिज कर दिया। पीठ की ओर से कहा गया कि किसी उम्मीदवार ने अपनी पिछली दोषसिद्धि का खुलासा नहीं किया है, तो इससे मतदाता के स्वतंत्र चुनाव अधिकार में बाधा उत्पन्न होती है। इस प्रकार मतदाता को सूचित और सलाह-मशविरा के साथ चुनाव करने का अधिकार नहीं मिलता।
अदालत ने कहा कि 1881 के अधिनियम की धारा 138 के तहत अपनी दोषसिद्धि का खुलासा न करके, याचिकाकर्ता ने महत्वपूर्ण जानकारी छिपाई। इस प्रकार मध्य प्रदेश नगर पालिका निर्वाचन नियम, 1994 के नियम 24-ए (1) की अनिवार्य आवश्यकताओं का पालन करने में विफल रही। इसलिए उसके नामांकन पत्र को स्वीकार करना सही नहीं है।
पूनम को मध्य प्रदेश के भीकनगांव नगर परिषद के पार्षद पद से हटा दिया गया था, क्योंकि उन्हें चेक बाउंस के एक मामले में दोषी ठहराया गया था। उन्होंने नामांकन पत्र में अपनी दोषसिद्धि का उल्लेख नहीं किया था। सुप्रीम कोर्ट में पूर्व पार्षद पूनम ने दावा किया कि उनकी दोषसिद्धि को हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया था और इसलिए उनके चुनाव को उस दोषसिद्धि के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता जो अब अस्तित्व में नहीं है। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि कोई गंभीर अपराध नहीं है या नैतिक पतन को नहीं दर्शाता है। ना ही चुनाव पर कोई सीधा प्रभाव पड़ता है।
जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस ए एस चंदुरकर की पीठ ने याचिकाकर्ता की याचिका को खारिज कर दिया। पीठ की ओर से कहा गया कि किसी उम्मीदवार ने अपनी पिछली दोषसिद्धि का खुलासा नहीं किया है, तो इससे मतदाता के स्वतंत्र चुनाव अधिकार में बाधा उत्पन्न होती है। इस प्रकार मतदाता को सूचित और सलाह-मशविरा के साथ चुनाव करने का अधिकार नहीं मिलता।
अदालत ने कहा कि 1881 के अधिनियम की धारा 138 के तहत अपनी दोषसिद्धि का खुलासा न करके, याचिकाकर्ता ने महत्वपूर्ण जानकारी छिपाई। इस प्रकार मध्य प्रदेश नगर पालिका निर्वाचन नियम, 1994 के नियम 24-ए (1) की अनिवार्य आवश्यकताओं का पालन करने में विफल रही। इसलिए उसके नामांकन पत्र को स्वीकार करना सही नहीं है।
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