H-1B Visa: अमेरिका में H-1B वीजा की फीस बढ़ने के बाद से ही कंपनियों के साथ-साथ रिसर्च यूनिवर्सिटीज को भी हायरिंग में दिक्कत हो रही है। अमेरिका में 71 रिसर्च संस्थानों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक संस्था है, जिसका नाम एसोसिएशन ऑफ अमेरिकन यूनिवर्सिटीज (AAU) है। वह यूएस चैंबर ऑफ कॉमर्स के साथ मिलकर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सरकार के उस फैसले के खिलाफ कोर्ट पहुंची है, जिसमें H-1B वीजा की फीस बढ़ाकर 1 लाख डॉलर (लगभग 88 लाख रुपये) कर दिया गया है।
डिस्ट्रिक्ट ऑफ कोलंबिया के यूएस डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में दायर केस में चैंबर और AAU ने कहा है कि नई फीस नई फीस कांग्रेस के इरादे और H-1B वीजा प्रोग्राम में कार्यकारी अधिकार के बीच संतुलन को बाधित करती है। उनका कहना है कि यूनिवर्सिटीज और कंपनियों के पास सिर्फ एक ही रास्ता है कि वह या तो खुद पूरा खर्चा उठाएं या फिर विदेशी स्किल वर्कर्स की हायरिंग कम कर दें। वीज फीस बढ़ने के बाद से ही कई कंपनियों ने शिकायत की है कि उन्हें हायरिंग में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
टीचर्स-प्रोफेसर्स को हायर करना हुआ मुश्किल
AAU का कहना है कि उसके 69 अमेरिकी सदस्य संस्थान इनोवेशन और स्कॉलरशिप के विश्व-प्रसिद्ध केंद्र हैं। ये संस्थान रिसर्च, टीचिंग और हेल्थकेयर में हाई स्किल वाले विदेशी वर्कर्स की हायरिंग के लिए H-1B वीजा प्रोग्राम पर निर्भर हैं। AAU ने कहा कि 1 लाख डॉलर की फीस की वजह से इसके सदस्यों को नुकसान हो रहा है, क्योंकि जो लोग फीस नहीं दे सकते हैं, उन्हें हायरिंग सीमित करनी पड़ रही है। ये संस्थान रिसर्चर्स, प्रोफेसर्स और डॉक्टर्स की हायरिंग H-1B वीजा प्रोग्राम के जरिए ही करते आए हैं।
क्यों बढ़ाई गई वीजा की फीस?
दरअसल, ट्रंप सरकार ने आदेश जारी करते हुए दावा किया था कि H-1B वीजा प्रोग्राम का कुछ कंपनियों द्वारा दुरुपयोग किया जा रहा था। खासतौर पर टेक्नोलॉजी सेक्टर में है, जहां कम सैलरी पर विदेशी वर्कर्स की हायरिंग हो रही थी। इसके जरिए टेक कंपनियां सस्ते वर्कर्स हायर कर रही थीं और अमेरिकी वर्कर्स की नौकरियां खत्म कर रही थीं। सरकार का कहना है कि ये फीस इसलिए लगाई गई है ताकि विदेशों से हायरिंग रुक जाए और सिर्फ उन्हीं लोगों को H-1B वीजा पर जॉब मिले, जो इसे पाने के हकदार हैं।
डिस्ट्रिक्ट ऑफ कोलंबिया के यूएस डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में दायर केस में चैंबर और AAU ने कहा है कि नई फीस नई फीस कांग्रेस के इरादे और H-1B वीजा प्रोग्राम में कार्यकारी अधिकार के बीच संतुलन को बाधित करती है। उनका कहना है कि यूनिवर्सिटीज और कंपनियों के पास सिर्फ एक ही रास्ता है कि वह या तो खुद पूरा खर्चा उठाएं या फिर विदेशी स्किल वर्कर्स की हायरिंग कम कर दें। वीज फीस बढ़ने के बाद से ही कई कंपनियों ने शिकायत की है कि उन्हें हायरिंग में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
टीचर्स-प्रोफेसर्स को हायर करना हुआ मुश्किल
AAU का कहना है कि उसके 69 अमेरिकी सदस्य संस्थान इनोवेशन और स्कॉलरशिप के विश्व-प्रसिद्ध केंद्र हैं। ये संस्थान रिसर्च, टीचिंग और हेल्थकेयर में हाई स्किल वाले विदेशी वर्कर्स की हायरिंग के लिए H-1B वीजा प्रोग्राम पर निर्भर हैं। AAU ने कहा कि 1 लाख डॉलर की फीस की वजह से इसके सदस्यों को नुकसान हो रहा है, क्योंकि जो लोग फीस नहीं दे सकते हैं, उन्हें हायरिंग सीमित करनी पड़ रही है। ये संस्थान रिसर्चर्स, प्रोफेसर्स और डॉक्टर्स की हायरिंग H-1B वीजा प्रोग्राम के जरिए ही करते आए हैं।
क्यों बढ़ाई गई वीजा की फीस?
दरअसल, ट्रंप सरकार ने आदेश जारी करते हुए दावा किया था कि H-1B वीजा प्रोग्राम का कुछ कंपनियों द्वारा दुरुपयोग किया जा रहा था। खासतौर पर टेक्नोलॉजी सेक्टर में है, जहां कम सैलरी पर विदेशी वर्कर्स की हायरिंग हो रही थी। इसके जरिए टेक कंपनियां सस्ते वर्कर्स हायर कर रही थीं और अमेरिकी वर्कर्स की नौकरियां खत्म कर रही थीं। सरकार का कहना है कि ये फीस इसलिए लगाई गई है ताकि विदेशों से हायरिंग रुक जाए और सिर्फ उन्हीं लोगों को H-1B वीजा पर जॉब मिले, जो इसे पाने के हकदार हैं।
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