Job Hugging in US: अमेरिका में आर्थिक अनिश्चिताओं के बीच यहां के दफ्तरों में एक नया ट्रेंड जन्म ले रहा है। इस ट्रेंड के पीछे की वजह ना तो आगे बढ़ने की आकांक्षा है और ना इनोवेशन। ये बस एक जगह टिके रहने का काम है। एक्सपर्ट्स ने इस नए ट्रेंड को Job Hugging (जॉब हगिंग) का नाम दिया है, जहां जॉब मार्केट में मची उथल-पुथल की वजह से वर्कर्स अपनी मौजूदा नौकरी पर टिके रहने चाहते हैं। ऐसा वे नौकरी से प्यार के लिए नहीं कर रहे हैं, बल्कि उन्हें मौजूदा जॉब मार्केट को लेकर डर है।
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एचआर प्रोफेशनल्स और वर्कप्लेस कंसल्टेंट्स ने दावा किया कि अमेरिका में ऐसे कर्मचारियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, जो सिर्फ अपनी नौकरियों से इसलिए चिपके हुए हैं, क्योंकि उन्हें यहां स्थिरता मिल रही है। वे नौकरी करते-करते बोर हो चुके हैं, थकान उन पर हावी हो रहा है और यहां तक कि उन्हें मौजूदा जॉब में कोई चुनौती भी नहीं मिल रही है। इसके बाद भी वे नौकरी नहीं छोड़ना चाहते हैं। जॉब हगिंग का ट्रेंड बड़े-बड़े टेक दफ्तरों से लेकर छोटी-छोटी कंपनियों तक में तेजी से पांव पसार रहा है।
क्या है 'जॉब हगिंग'?
अब यहां सवाल उठता है कि आखिर 'जॉब हगिंग' क्या चीज है और ये कैसे पॉपुलर हो रही है? दरअसल, 'जॉब हगिंग' का उदय एकदम से नहीं हुआ है। यूएस ब्यूरो ऑफ लेबर स्टैटिक्स के मुताबिक, मार्च 2025 तक एक साल के दौरान अमेरिकी अर्थव्यवस्था में 9.11 लाख कम जॉब्स जुड़ी हैं। इसका मतलब है कि अर्थव्यवस्था में नौकरियों की कमी है। इस गिरावट की वजह से बहुत से वर्कर्स मौजूदा जॉब मार्केट को लेकर डर रहे हैं। आलम ये है कि जॉब ढूंढने पर खर्च किया जाने वाला समय भी बढ़ गया है।
कुछ साल पहले तक अमूमन एक कर्मचारी 8 हफ्ते तक नौकरी ढूंढता तो उसे वो मिल जाती थी, लेकिन अब ये बढ़कर 10 हफ्ते हो चुका है। कोविड महामारी के बाद हुई छंटनी की वजह से लोग अनिश्चितता में हैं। उन्हें लग रहा है कि अगर वे नौकरी ढूंढने जाएंगे, तो वह उन्हें नहीं मिलेगी। इस वजह से अब वे स्थिरता की तलाश में हैं। जुलाई में सामने आई एक रिपोर्ट में खुद अमेरिका के बहुत से वर्कर्स ने कबूल किया कि वे अपनी मौजूदा जॉब में कम से कम छह महीने तक बने रहने के बारे में सोच रहे हैं।
अब 'जॉब हगिंग' के बारे में भी जान लेते हैं। 'जॉब हगिंग' का मतलब है कि कर्मचारी अपनी मौजूदा नौकरी पर बना हुआ है और वह उसे छोड़ना नहीं चाहता है। उसे दूसरी नौकरी नहीं मिलने का डर है। वह स्थिरता के लिए अपनी मौजूदा जॉब पर टिका हुआ है। उसे ना तो नौकरी से वफादारी है और ना ही वह उसे करना करना चाहता है। बस स्थिरता ने उसे मौजूदा नौकरी से जोड़ा हुआ है। 'जॉब हगिंग' की वजह से परफॉर्मेंस पर असर भी दिखने लगता है, क्योंकि कर्मचारी बस बेमन काम कर रहे होते हैं।
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एचआर प्रोफेशनल्स और वर्कप्लेस कंसल्टेंट्स ने दावा किया कि अमेरिका में ऐसे कर्मचारियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, जो सिर्फ अपनी नौकरियों से इसलिए चिपके हुए हैं, क्योंकि उन्हें यहां स्थिरता मिल रही है। वे नौकरी करते-करते बोर हो चुके हैं, थकान उन पर हावी हो रहा है और यहां तक कि उन्हें मौजूदा जॉब में कोई चुनौती भी नहीं मिल रही है। इसके बाद भी वे नौकरी नहीं छोड़ना चाहते हैं। जॉब हगिंग का ट्रेंड बड़े-बड़े टेक दफ्तरों से लेकर छोटी-छोटी कंपनियों तक में तेजी से पांव पसार रहा है।
क्या है 'जॉब हगिंग'?
अब यहां सवाल उठता है कि आखिर 'जॉब हगिंग' क्या चीज है और ये कैसे पॉपुलर हो रही है? दरअसल, 'जॉब हगिंग' का उदय एकदम से नहीं हुआ है। यूएस ब्यूरो ऑफ लेबर स्टैटिक्स के मुताबिक, मार्च 2025 तक एक साल के दौरान अमेरिकी अर्थव्यवस्था में 9.11 लाख कम जॉब्स जुड़ी हैं। इसका मतलब है कि अर्थव्यवस्था में नौकरियों की कमी है। इस गिरावट की वजह से बहुत से वर्कर्स मौजूदा जॉब मार्केट को लेकर डर रहे हैं। आलम ये है कि जॉब ढूंढने पर खर्च किया जाने वाला समय भी बढ़ गया है।
कुछ साल पहले तक अमूमन एक कर्मचारी 8 हफ्ते तक नौकरी ढूंढता तो उसे वो मिल जाती थी, लेकिन अब ये बढ़कर 10 हफ्ते हो चुका है। कोविड महामारी के बाद हुई छंटनी की वजह से लोग अनिश्चितता में हैं। उन्हें लग रहा है कि अगर वे नौकरी ढूंढने जाएंगे, तो वह उन्हें नहीं मिलेगी। इस वजह से अब वे स्थिरता की तलाश में हैं। जुलाई में सामने आई एक रिपोर्ट में खुद अमेरिका के बहुत से वर्कर्स ने कबूल किया कि वे अपनी मौजूदा जॉब में कम से कम छह महीने तक बने रहने के बारे में सोच रहे हैं।
अब 'जॉब हगिंग' के बारे में भी जान लेते हैं। 'जॉब हगिंग' का मतलब है कि कर्मचारी अपनी मौजूदा नौकरी पर बना हुआ है और वह उसे छोड़ना नहीं चाहता है। उसे दूसरी नौकरी नहीं मिलने का डर है। वह स्थिरता के लिए अपनी मौजूदा जॉब पर टिका हुआ है। उसे ना तो नौकरी से वफादारी है और ना ही वह उसे करना करना चाहता है। बस स्थिरता ने उसे मौजूदा नौकरी से जोड़ा हुआ है। 'जॉब हगिंग' की वजह से परफॉर्मेंस पर असर भी दिखने लगता है, क्योंकि कर्मचारी बस बेमन काम कर रहे होते हैं।
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