बीजिंग, 14 सितंबर . सतत विकास की दिशा में चीन ने एक और ऐतिहासिक कदम उठाया है. हाल ही में शांगदोंग प्रांत के छिंगताओ शहर में दुनिया की पहली “सुपर ज़ीरो-कार्बन बिल्डिंग” टेल्ड मुख्यालय बेस का उद्घाटन हुआ. यह इमारत शून्य-कार्बन वास्तुकला की दिशा में चीन की प्रगति का एक नया मील का पत्थर मानी जा रही है जो केवल वास्तुकला का चमत्कार नहीं है, बल्कि वैश्विक जलवायु लक्ष्यों की दिशा में चीन की गंभीर प्रतिबद्धता का ठोस उदाहरण है.
117 मंजिलों वाली इस इमारत का दैनिक ऊर्जा उपभोग लगभग 6,000 किलोवाट-घंटे है, जिसे मुख्य रूप से हरित स्रोतों से पूरा किया जाता है. भवन के तीन हिस्सों में लगे फोटोवोल्टिक ग्लास पर्दे इसे “बिजली पैदा करने वाला कोट” बना देते हैं. यह व्यवस्था न केवल स्थानीय ऊर्जा उत्पादन को सक्षम बनाती है, बल्कि डीसी से एसी में परिवर्तन से होने वाले ऊर्जा नुकसान को भी कम करती है. नतीजतन, इमारत अपनी 25 प्रतिशत ऊर्जा स्वयं पैदा करती है और हर साल लगभग 500 टन कार्बन उत्सर्जन घटाती है.
सौर ऊर्जा के साथ-साथ कैस्केड ऊर्जा भंडारण बैटरी और नए ऊर्जा वाहनों से विद्युत निर्वहन जैसी तकनीकें इसे 100 प्रतिशत हरित ऊर्जा प्रतिस्थापन के करीब ले जाती हैं. यह मॉडल आने वाले वर्षों में “स्मार्ट ज़ीरो-कार्बन सिटी” की परिकल्पना को साकार करने की दिशा दिखाता है.
यह उद्घाटन ऐसे समय हुआ है जब दुनिया “नेट-ज़ीरो 2050” के लक्ष्य को हासिल करने की ओर बढ़ रही है. चीन ने 2030 तक कार्बन पीक और 2060 तक कार्बन न्यूट्रल बनने का लक्ष्य घोषित किया है. छिंगताओ की यह इमारत न केवल उस वादे की झलक है, बल्कि यह संकेत भी देती है कि चीन तकनीकी समाधान को जलवायु नीति से जोड़ने में अग्रणी भूमिका निभा रहा है.
India और चीन दोनों ही बड़ी ऊर्जा खपत करने वाले देश हैं और दोनों पर वैश्विक जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने की जिम्मेदारी भी है. India तेजी से सौर ऊर्जा और ग्रीन बिल्डिंग टेक्नोलॉजी में निवेश कर रहा है. चीन का यह मॉडल भारतीय शहरों के लिए प्रेरणा हो सकता है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ प्रदूषण और ऊर्जा मांग दोनों ही चुनौती बने हुए हैं. अगर दोनों देश तकनीकी सहयोग, ज्ञान-साझेदारी और हरित निवेश के क्षेत्र में साथ आते हैं, तो यह पूरे एशिया को शून्य-कार्बन विकास के मार्ग पर अग्रसर कर सकता है.
छिंगताओ की “सुपर ज़ीरो-कार्बन बिल्डिंग” केवल एक इमारत नहीं है, बल्कि भविष्य की उस दिशा का प्रतीक है जहाँ विकास और पर्यावरण साथ-साथ चलते हैं. यह एक संदेश भी है कि जलवायु संकट का समाधान केवल नीतियों में नहीं, बल्कि उन ठोस तकनीकी प्रयोगों में छिपा है जो धरती को स्वच्छ और सतत बना सकते हैं.
विशेषज्ञों का मानना है कि यह परियोजना चीन की पर्यावरण-हितैषी नीतियों और हरित विकास के संकल्प को प्रदर्शित करती है. यह न केवल वास्तुकला में नवाचार का उदाहरण है, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सतत और स्वच्छ भविष्य की दिशा भी दिखाती है.
(दिव्या पाण्डेय – चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)
–
एएस/
You may also like
गुरुग्राम: समाधान शिविर में शिकायतों का प्राथमिकता से हो रहा निदान: वत्सल वशिष्ठ
Karwa Chauth Tips- करवा चौथ पर अगर आप करेंगे ये गलतियां तो व्रत का नहीं मिलता हैं फल, जानिए पूरी डिटेल्स
Jio Plan- 455 या 449 में से कौनसा रिचार्ज प्लान आपके लिए बेहतर हैं, आइए जानें
सैफ अली खान पर हमले की रात: बेटे जेह और नैनी भी थे शिकार!
मेहनत के बावजूद नहीं हो रहा प्रमोशन? AI का ऐसे उठाएंगे फायदा तो सैलरी भी बढ़ सकती है