Mumbai , 16 अक्टूबर . कीर्ति सुरेश, जिन्हें अक्सर ‘लेडी सुपरस्टार’ कहा जाता है, मलयालम, तमिल, तेलुगु और अब Bollywood की एक वर्सेटाइल एक्ट्रेस हैं. 17 अक्टूबर 1992 को चेन्नई में जन्मीं कीर्ति मलयालम सिनेमा की मशहूर एक्ट्रेस मेनका और प्रोड्यूसर सुरेश कुमार की बेटी हैं.
उन्होंने मात्र 8 साल की उम्र में चाइल्ड आर्टिस्ट के रूप में डेब्यू किया, लेकिन असली ब्रेकथ्रू 2013 में मलयालम फिल्म ‘गीतांजली’ से मिला, जहां उन्होंने लीड रोल प्ले किया. 2018 में तमिल फिल्म ‘महानति’ में लीजेंड्री एक्ट्रेस सावित्री की बायोपिक रोल के लिए बेस्ट एक्ट्रेस का नेशनल अवॉर्ड जीता. यह फिल्म सुपरहिट रही और कीर्ति को पैन-इंडिया फेम दिलाया.
Actor नितिन के साथ ‘रंग दे’ में रोमांटिक केमिस्ट्री और नानी के अपोजिट ‘दसरा’ में इंटेंस ड्रामा, हर रोल में कीर्ति ने साबित किया कि वे सिर्फ ग्लैमर नहीं, इमोशंस की मास्टर हैं.
2024 में उन्होंने वरुण धवन के साथ ‘बेबी जॉन’ से हिंदी डेब्यू किया, जो तमिल सुपरहिट ‘थेरि’ की रीमेक है. यहां कीर्ति ने एक मजबूत महिला का किरदार निभाया, जिसमें एक्शन, डांस और इमोशंस का परफेक्ट ब्लेंड था. उनकी डांस स्किल्स, चाहे क्लासिकल भरतनाट्यम हो या मॉडर्न मूव्स, फैंस को दीवाना बना देती हैं.
कीर्ति सुरेश ने फिल्म ‘महानति’ के किरदार के लिए खुद को भी भुला दिया था. उन्होंने इसके लिए स्वयं को दूसरों से अलग-थलग कर लिया था. इस बात का जिक्र कीर्ति सुरेश ने एक इंटरव्यू में किया था. ‘महानति’ तेलुगु सिनेमा की महान Actress सावित्री के उतार-चढ़ाव भरे जीवन पर आधारित एक बायोपिक थी.
निर्देशक नाग अश्विन ने इस फिल्म को डायरेक्ट किया था और मुख्य भूमिका के लिए युवा Actress कीर्ति सुरेश को चुना गया. सावित्री, जिनके अभिनय में एक सहजता, गहराई और त्रासदी का भाव था, उनकी भूमिका निभाना किसी भी कलाकार के लिए महज एक रोल नहीं, बल्कि साधना और भावनात्मक अग्निपरीक्षा थी.
कीर्ति सुरेश ने इस किरदार को इतनी शिद्दत से निभाया कि उन्हें सर्वश्रेष्ठ Actress का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला, लेकिन इस कामयाबी के पीछे एक गहरी भावनात्मक यात्रा छिपी थी.
फिल्म ‘महानति’ केवल प्रसिद्धि और स्टारडम की कहानी नहीं थी, बल्कि यह सावित्री के जीवन की त्रासदी, प्यार, धोखा, शराब की लत और एक दुखद अंत, को भी दर्शाती थी. कीर्ति सुरेश के लिए सबसे बड़ा भावनात्मक दबाव उनके किरदार के अंतिम चरणों को निभाना था.
कीर्ति ने इंटरव्यू में बताया कि उन्होंने सावित्री के हाव-भाव, उनकी आवाज की टोन और उनके मुस्कुराने के तरीके को समझने के लिए हफ्तों उनके फुटेज देखे. लेकिन जब किरदार उनके दुखद जीवन में प्रवेश करता था, तो यह तैयारी शारीरिक से अधिक मानसिक और भावनात्मक हो जाती थी.
फिल्म का वह हिस्सा, जहां सावित्री अवसाद से जूझती हैं और शराब पर निर्भर हो जाती हैं, कीर्ति के लिए सबसे मुश्किल था. उन्होंने बताया कि शूटिंग के दौरान वह उस दर्द को वास्तव में महसूस करने लगी थीं. उन्हें अक्सर सेट पर या पैक-अप के बाद खुद को शांत करना पड़ता था, क्योंकि किरदार की नकारात्मक भावनाएं उन पर हावी हो जाती थीं.
Actress सावित्री के अंतिम दिन अकेलेपन और वित्तीय संकट में बीते थे. कीर्ति ने बताया कि उस दर्द को पर्दे पर जीवंत करने के लिए उन्हें खुद को भावनात्मक रूप से अलग-थलग करना पड़ा. यह उनके लिए एक कलाकार के रूप में खुद को पूरी तरह से किसी अन्य की त्रासदी के हवाले कर देने जैसा था.
कीर्ति सुरेश ने इस भावनात्मक दबाव को रचनात्मक रूप से इस्तेमाल किया. उनकी आंखों में वह खालीपन, उनकी आवाज में वह थकान और उनके हाव-भाव में वह टूटन स्पष्ट रूप से दिखाई देती थी, जिसने दर्शकों को झकझोर दिया.
जब फिल्म रिलीज हुई, तो आलोचकों और दर्शकों दोनों ने कीर्ति सुरेश के अभिनय को एक असाधारण उपलब्धि बताया. उन्होंने सिर्फ सावित्री की नकल नहीं की, बल्कि उन्हें महसूस किया. ‘महानति’ की शूटिंग का वह भावनात्मक दबाव ही था, जिसने एक युवा Actress को राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता कलाकार में बदल दिया और यह साबित कर दिया कि कुछ किरदार केवल अभिनय नहीं मांगते, वे कलाकार की आत्मा का समर्पण मांगते हैं.
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जेपी/एबीएम
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