राजस्थान में आईटी विभाग के अधिकारी प्रद्युमन दीक्षित और उनकी पत्नी पूनम दीक्षित का भ्रष्टाचार मामला सामने आया है. पत्नी ने दो निजी कंपनियों से बिना काम किए ₹37.54 लाख की सैलरी ली. जांच में पता चला कि ये कंपनियां सरकारी टेंडर लेने के बदले अफसर की पत्नी को फर्जी कर्मचारी दिखाकर पैसा देती रहीं. ACB ने दोनों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की तैयारी शुरू कर दी है.
राजस्थान में एक सनसनीखेज मामला सामने आया है, जहां सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के संयुक्त निदेशक प्रद्युमन दीक्षित की पत्नी पूनम दीक्षित ने दो निजी कंपनियों से बिना काम किए 37.54 लाख रुपये की ‘सैलरी’ ली. खास बात यह है कि इन कंपनियों को सरकारी टेंडर भी मिले थे. यह पूरा मामला तब उजागर हुआ जब किसी शिकायतकर्ता ने राजस्थान हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की.
हाईकोर्ट के आदेश पर एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) ने जांच शुरू की और पाया कि जनवरी 2019 से सितंबर 2020 के बीच पूनम दीक्षित के पांच खातों में 37.54 लाख रुपये ‘वेतन’ के नाम पर ट्रांसफर किए गए. जबकि वह एक दिन भी ऑफिस नहीं गई थीं.
कंपनियों और अफसर की मिलीभगतजांच में खुलासा हुआ कि प्रद्युमन दीक्षित ने सरकारी टेंडर देने के बदले कंपनियों OrionPro Solutions और Treegen Software Limited को अपनी पत्नी को फर्जी कर्मचारी बनाकर वेतन देने का निर्देश दिया था. यह पैसा सीधे पूनम के खातों में ट्रांसफर होता रहा.
फर्जी हाज़िरी लगवाता था पतिACB ने पाया कि पूनम दीक्षित की हाज़िरी रिपोर्ट खुद उनके पति प्रद्युमन दीक्षित मंज़ूर करते थे. दोनों कंपनियों ने भी उनके नाम पर वेतन जारी किया, जिससे घोटाले का आकार बड़ा होता गया.
दो कंपनियों से एक साथ सैलरीसबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि पूनम दीक्षित दो कंपनियों से एक साथ वेतन ले रही थीं. एक जगह उन्हें OrionPro Solutions में कर्मचारी दिखाया गया, तो दूसरी जगह Treegen Software Limited में ‘फ्रीलांसर’ के रूप में. जांच के अनुसार, जिस दौरान पूनम को वेतन दिया जा रहा था, उसी दौरान दोनों कंपनियों को सरकारी टेंडर भी मिले. यानी सरकारी काम के बदले निजी लाभ का पूरा खेल रचा गया था.
ACB की सख्त कार्रवाई की तैयारीACB ने अब प्रद्युमन दीक्षित और उनकी पत्नी के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों में केस दर्ज करने की तैयारी कर ली है. जांच एजेंसी का कहना है कि यह सरकारी प्रणाली में व्याप्त ‘घूस की नई तकनीक’ का उदाहरण है. यह मामला सिर्फ एक अफसर या दो कंपनियों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सवाल उठाता है कि सरकारी टेंडरों और नियुक्तियों में पारदर्शिता कितनी है. अगर पत्नी के नाम पर भी घूस ली जा सकती है, तो फिर भ्रष्टाचार की जड़ें कितनी गहरी हैं?
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