आजकल, किसान पारंपरिक खेती को छोड़कर सब्जियों की फसल उगाने में जुटे हुए हैं। मौसमी सब्जियों की खेती से उन्हें अच्छी आय हो रही है, जिससे वे इस दिशा में तेजी से बढ़ रहे हैं। पहले, भारतीय किसान केवल पारंपरिक फसलों पर निर्भर थे, लेकिन अब वे सब्जियों और फलों की खेती भी कर रहे हैं, जिससे उनकी आय में वृद्धि हो रही है.
तोरई की खेती: एक लाभकारी विकल्प
तोरई एक ऐसी फसल है, जिससे किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं। इसे सब्जियों में एक नकदी फसल माना जाता है। आमतौर पर, यह फसल दो महीने में तैयार होती है, लेकिन फर्रुखाबाद में कृषि वैज्ञानिकों ने एक विशेष किस्म विकसित की है, जो उन्नत और उच्च पैदावार देने वाली है.
कृषि वैज्ञानिकों की पहल
कृषि वैज्ञानिक राहुल पाल ने बताया कि वे कमालगंज के श्री गंगारामपुर में पाली हाउस में नर्सरी तैयार करते हैं। यहां रोपाई के लगभग एक महीने बाद तोरई की फसल निकलने लगती है। बाजार में तोरई की कीमत काफी अधिक होती है, जिससे किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.
कम लागत में अधिक उत्पादन
यहां तैयार की गई नर्सरी में फसल रोगमुक्त होती है, जिससे लागत कम होती है। वर्तमान में, मिर्च, टमाटर, बैंगन और तोरई के साथ लौकी की नर्सरी भी तैयार की गई है, जिसकी कीमत प्रति पौधा एक रुपये से शुरू होती है. इस लेख में, हम आपको कम लागत में बंपर नकदी फसल तैयार करने की विधि बताएंगे.
तोरई की खेती के लिए आदर्श जलवायु
तोरई की खेती के लिए 25 से 37 डिग्री सेल्सियस का तापमान उपयुक्त होता है। इसकी फसल के लिए मिट्टी का पीएच मान 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए. तोरई, जो कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा और विटामिन ए से भरपूर होती है, विशेष रूप से एक नकदी फसल है.
तोरई की खेती की प्रक्रिया
तोरई की खेती के लिए, नमीदार खेत में जैविक खाद डालकर जुताई की जाती है। खेत को समतल करके 2.5 × 2 मीटर की दूरी पर 30 × 30 सेंटीमीटर के गड्ढे खोदकर तोरई की पौध रोपी जाती है। इसके बाद, समय पर सिंचाई और गुड़ाई की जाती है.
तोरई की फसल का लाभ
जब पौधे बड़े हो जाते हैं, तो तोरई की इस उन्नत किस्म की कटाई के लिए लगभग एक माह का समय लगता है। बाजार में तोरई की शुरुआती कीमत 60 से 80 रुपये प्रति किलो तक होती है। एक बीघा खेत में एक बार की फसल से लगभग 70,000 रुपये की कमाई आसानी से हो जाती है.
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