घर खरीदना या किराए पर रहना ये फैसला आज के युवाओं के लिए एक बड़ा सवाल बन चुका है। एक तरफ घर खरीदने से ओनरशिप और लॉन्ग-टर्म वेल्थ बनती है तो वही दूसरी तरफ किराए पर रहने से फ्रीडम कम , खर्च और लोकेशन बदलने की सुविधा मिलती है। ये सिर्फ पैसे का ही नहीं बल्कि लाइफस्टाइल और फ्यूचर प्लान का भी एक बड़ा मुद्दा है। 20 की उम्र में करियर और जगह बदलने की संभावना ज्यादा होती है तो वहीं 30 में इनकम होने के बाद घर खरीदने का फैसला फायदे का सौदा बन सकता है। आइए समझते हैं दोनों ऑप्शन के फायदे और नुकसान।
कब किराए पर रहना बेहतर है?
अगर आपकी लाइफस्टाइल में आज़ादी और मूव करने की जरूरत है तो किराए पर रहना बेहतर ऑप्शन हो सकता है। यह खासतौर पर उन लोगों के लिए अच्छा है जो जॉब बदलते हैं या अभी घर खरीदने के लिए सेविंग कर रहे हैं। लोगों के लिए यह और भी बेहतर है क्योंकि इससे उन्हें नए शहरों और करियर अवसरों को एक्सप्लोर करने का मौका मिलता है।
कब घर खरीदना समझदारी है?अगर आप किसी जगह लंबे समय के लिए सेटल होना चाहते हैं तो घर खरीदना एक समझदारी भरा फैसला हो सकता है। प्रॉपर्टी की कीमतें हर साल 8–10% तक बढ़ सकती हैं जिससे यह एक अच्छा इन्वेस्टमेंट बनता है। EMI के जरिए आप धीरे-धीरे प्रॉपर्टी के मालिक बनते हैं और सेक्शन 24 व 80C के तहत टैक्स में आपको छूट भी मिलती है। आपको PMAY जैसी सरकारी योजनाओं से सब्सिडी का भी लाभ मिल सकता है। सबसे अहम बात घर सिर्फ संपत्ति नहीं एक इमोशनल सिक्योरिटी भी देता है।
घर खरीदने और किराए के नुकसान
जहां घर खरीदने के अपने फायदे हैं वहीं इससे जुड़े कुछ बड़े खर्च भी होते हैं जैसे डाउन पेमेंट, स्टाम्प ड्यूटी, रजिस्ट्रेशन फीस और नियमित मेंटेनेंस। इसके अलावा घर एक इलिक्विड एसेट होता है यानी कि ज़रूरत पड़ने पर इसे तुरंत बेचना आसान नहीं होता। दूसरी ओर किराए पर रहने के भी अपने नुकसान हैं। प्रॉपर्टी आपकी नहीं होती जिससे आप उसमें लॉन्ग टर्म के लिए बदलाव नहीं कर सकते। साथ ही हर साल किराए में एवरेज 5–8% की बढ़ोतरी होती है और यदि खुद का घर नहीं खरीदा जाए तो पूरी जिंदगी किराया चुकाना पड़ सकता है जिससे रिटायरमेंट के बाद फाइनेंशियल दबाव और भी बढ़ सकता है
कैसे लें फैसला घर खरीदने या किराए पर रहने का फैसला लेने से पहले कुछ जरूरी बातों को ध्यान में रखना चाहिए। सबसे पहले आपकी इनकम और सेविंग्स यह तय करती हैं कि आप डाउन पेमेंट और EMI आराम से दे पाएंगे या नहीं। आपकी जॉब की स्थिरता और लोकेशन भी महत्वपूर्ण है अगर आप अक्सर शहर बदलते हैं तो किराए पर रहना बेहतर हो सकता है। साथ ही जिस शहर की रियल एस्टेट कीमतें हैं तो लोन और ब्याज दरें भी इस फैसले पर असर ढालती हैं। अंत में सही फैसला वही होता है जो आपकी लाइफ स्टेज, करियर प्लान और फाइनेंशियल हेल्थ से मेल खाता हो ऐसा फैसला जो आज ही नहीं बल्कि भविष्य में भी आपके लिए सही साबित हो।
कब किराए पर रहना बेहतर है?
अगर आपकी लाइफस्टाइल में आज़ादी और मूव करने की जरूरत है तो किराए पर रहना बेहतर ऑप्शन हो सकता है। यह खासतौर पर उन लोगों के लिए अच्छा है जो जॉब बदलते हैं या अभी घर खरीदने के लिए सेविंग कर रहे हैं। लोगों के लिए यह और भी बेहतर है क्योंकि इससे उन्हें नए शहरों और करियर अवसरों को एक्सप्लोर करने का मौका मिलता है।
कब घर खरीदना समझदारी है?अगर आप किसी जगह लंबे समय के लिए सेटल होना चाहते हैं तो घर खरीदना एक समझदारी भरा फैसला हो सकता है। प्रॉपर्टी की कीमतें हर साल 8–10% तक बढ़ सकती हैं जिससे यह एक अच्छा इन्वेस्टमेंट बनता है। EMI के जरिए आप धीरे-धीरे प्रॉपर्टी के मालिक बनते हैं और सेक्शन 24 व 80C के तहत टैक्स में आपको छूट भी मिलती है। आपको PMAY जैसी सरकारी योजनाओं से सब्सिडी का भी लाभ मिल सकता है। सबसे अहम बात घर सिर्फ संपत्ति नहीं एक इमोशनल सिक्योरिटी भी देता है।
घर खरीदने और किराए के नुकसान
जहां घर खरीदने के अपने फायदे हैं वहीं इससे जुड़े कुछ बड़े खर्च भी होते हैं जैसे डाउन पेमेंट, स्टाम्प ड्यूटी, रजिस्ट्रेशन फीस और नियमित मेंटेनेंस। इसके अलावा घर एक इलिक्विड एसेट होता है यानी कि ज़रूरत पड़ने पर इसे तुरंत बेचना आसान नहीं होता। दूसरी ओर किराए पर रहने के भी अपने नुकसान हैं। प्रॉपर्टी आपकी नहीं होती जिससे आप उसमें लॉन्ग टर्म के लिए बदलाव नहीं कर सकते। साथ ही हर साल किराए में एवरेज 5–8% की बढ़ोतरी होती है और यदि खुद का घर नहीं खरीदा जाए तो पूरी जिंदगी किराया चुकाना पड़ सकता है जिससे रिटायरमेंट के बाद फाइनेंशियल दबाव और भी बढ़ सकता है
कैसे लें फैसला घर खरीदने या किराए पर रहने का फैसला लेने से पहले कुछ जरूरी बातों को ध्यान में रखना चाहिए। सबसे पहले आपकी इनकम और सेविंग्स यह तय करती हैं कि आप डाउन पेमेंट और EMI आराम से दे पाएंगे या नहीं। आपकी जॉब की स्थिरता और लोकेशन भी महत्वपूर्ण है अगर आप अक्सर शहर बदलते हैं तो किराए पर रहना बेहतर हो सकता है। साथ ही जिस शहर की रियल एस्टेट कीमतें हैं तो लोन और ब्याज दरें भी इस फैसले पर असर ढालती हैं। अंत में सही फैसला वही होता है जो आपकी लाइफ स्टेज, करियर प्लान और फाइनेंशियल हेल्थ से मेल खाता हो ऐसा फैसला जो आज ही नहीं बल्कि भविष्य में भी आपके लिए सही साबित हो।
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