अमेरिका और सऊदी अरब ने मंगलवार को एक ऐतिहासिक अरबों डॉलर के आर्थिक और सैन्य सहयोग पैकेज पर हस्ताक्षर किए.
व्हाइट हाउस के अनुसार, 600 अरब डॉलर से अधिक के इस पैकेज में 'इतिहास का सबसे बड़ा हथियार सौदा' शामिल है.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की यात्रा के दौरान रियाद में इस पैकेज की घोषणा हुई. इसमें रक्षा, ऊर्जा, इन्फ़्रास्ट्रक्चर और आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में सहयोग शामिल हैं, जिनका प्रभाव व्यापर से परे है.
इसमें से 142 अरब डॉलर का सौदा सऊदी अरब को अत्याधुनिक तकनीक से लैस करने के लिए किया है. वहीं इसके साथ ही सऊदी अरब अमेरिका में डेटा सेंटर, विमानन, स्वास्थ्य सेवा और खनिजों में कई अरब डॉलर का निवेश करेगा.
ये सभी घोषणाएं ट्रंप के चार दिवसीय मध्य-पूर्वी देशों के दौरे के पहले ही दिन हुई है, जिसकी शुरुआत सऊदी अरब से हुई. अब ट्रंप क़तर और संयुक्त अरब अमीरात यानी यूएई के दौरे पर हैं.
दोनों देशों के बीच संबंधों के 80 बरस भी ग़ज़ा में युद्ध, ईरान के साथ तनाव और पड़ोसी यमन में हूती विद्रोहियों के हमलों के बीच पूरे हुए हैं.
अरबों डॉलर का रक्षा सौदा
व्हाइट हाउस के एक बयान के अनुसार, अमेरिका और सऊदी अरब की ओर से घोषित पैकेज में कुल 600 अरब डॉलर से अधिक के आर्थिक, वाणिज्यिक और सैन्य सौदे शामिल हैं
इसमें से सबसे बड़ा सौदा अमेरिका का अपने अरब साझीदार को लगभग 142 अरब डॉलर के हथियारों की बिक्री है. इसे अमेरिका ने 'इतिहास का सबसे बड़ा रक्षा सौदा' बताया है.
इस सौदे में पाँच प्रमुख बिंदु शामिल हैं:
- सऊदी अरब की वायु और अंतरिक्ष से जुड़ी क्षमताओं को मज़बूत करना
- मिसाइल डिफ़ेंस सिस्टम
- समुद्री और तटीय सुरक्षा
- लैंड और बॉर्डर फ़ोर्सेज़ का आधुनिकीकरण
- सूचना और संचार प्रणालियों में सुधार
इसमें सऊदी अरब की सेना की ऑपरेशनल कैपेसिटी जैसे मिलिट्री मेडिकल अकेडमिक्स और सर्विसेज़ को बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण और तकनीकी सहायता कार्यक्रम भी शामिल हैं.
इस घोषणा के बाद ट्रंप ने भाषण में कहा, "मैं अमेरिका की रक्षा करने या हमारे सहयोगियों की रक्षा करने में अमेरिकी ताक़त का इस्तेमाल करने में कभी संकोच नहीं करूंगा."
फॉरेन पॉलिसी ऐनालिस्ट डैनियल डेपेट्रिस ने बीबीसी मुंडो को बताया कि अरबों डॉलर का ये सौदा क्षेत्रीय सैन्य शक्ति के रूप में सऊदी अरब की स्थिति को मज़बूत करता है. हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया, "सऊदी अरब के सशस्त्र बलों के पास पहले से ही अमेरिका के कुछ बेहतरीन उपकरण हैं. हमेशा से ऐसा ही रहा है."
इस मेगा-डील की घोषणा के दौरान तारीफ़ भरे बयान सुने गए और ट्रंप और सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के बीच निकटता भी दिखी.
अमेरिकी राष्ट्रपति का ज़ोरदार स्वागत किया गया. उनके साथ एलन मस्क, ब्लैकरॉक और ब्लैकस्टोन जैसी असेट मैनेजमेंट कंपनियों के अधिकारी भी मौजूद थे.
ये धूमधाम भरा स्वागत समारोह उस स्वागत के उलट है जो अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन को सऊदी अरब के दौरे पर मिला था. बाइडन ने साल 2022 में गैसोलीन की कीमतों को कम करने में मदद के लिए तेल-समृद्ध सऊदी अरब की यात्रा की थी. उस समय क्राउन प्रिंस की ओर से बाइडन के स्वागत में भी गर्मजोशी नहीं दिखी.
साल 2018 में पत्रकार जमाल खाशोज्जी की हत्या के बाद सऊदी अरब से अमेरिका के रिश्ते तनावपूर्ण हो गए थे. इसके बाद बाइडन ने सऊदी अरब का दौरा किया था, जिसमें ये तनाव भी दिखा.
हालांकि, ऐसा लगता है कि ये सब पीछे छूट गया है.
ट्रंप ने बांधे तारीफ़ों के पुल
डोनाल्ड ट्रंप ने द्विपक्षीय संबंधों की सकारात्मक गति पर रोशनी डालते हुए कहा, "हमने मिलकर अभूतपूर्व और ज़बरदस्त प्रगति की है."
उन्होंने इसे मध्य पूर्व के लिए 'एक नए उज्ज्वल युग' की शुरुआत बताया.
ट्रंप ने कहा, "हज़ार साल में पहली बार दुनिया इस क्षेत्र को युद्ध और मौत की जगह के रूप में नहीं बल्कि उम्मीद और अवसरों की भूमि की तौर पर देखेगी."
उन्होंने कहा, "हम साथ मिलकर काम करेंगे, हम साथ मिलकर सफल होंगे, हम साथ मिलकर जीतेंगे और हम हमेशा दोस्त रहेंगे."
वहीं मोहम्मद बिन सलमान ने इस समझौते को दोनों देशों के बीच 'गहरे आर्थिक संबंधों' का प्रदर्शन बताया.
उन्होंने आश्वासन दिया कि आने वाले महीनों में इस समझौते का विस्तार किया जाएगा और इसके अनुमानित मूल्य को एक ट्रिलियन यानी 10 खरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचाया जाएगा. क्राउन प्रिंस ने इस बात पर ज़ोर दिया कि सहयोग केवल आर्थिक क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है बल्कि सुरक्षा, स्थिरता और क्षेत्रीय शांति तक भी है.
रक्षा के अलावा इस बड़े पैकेज में आर्थिक और तकनीकी क्षेत्र शामिल हैं.
व्हाइट हाउस के अनुसार, इनमें सऊदी अरब की कंपनी डेटावोल्ट की तरफ़ से अमेरिका में डेटा सेंटर और एनर्जी इनफ़्रास्ट्रक्चर में 20 अरब डॉलर का निवेश, गूगल-ओरैकल, सेल्सफोर्स, एएमडी और ऊबर जैसी टेक कंपनियों के बीच साझेदारी शामिल है. साथ ही दोनों देशों में 'ट्रांसफर्मेटिव' टेक्नोलॉजी में 80 अरब डॉलर का निवेश भी किया जाएगा.
दोनों देशों के बीच 14.2 अरब डॉलर की गैस पाइपलाइन और टरबाइन के निर्यात से जुड़े सौदे पर भी हस्ताक्षर किए गए. साथ ही, सऊदी अरब की एयरलाइन एविलीज़ को 4.8 अरब अमेरिकी डॉलर में बोइंग 737-8 विमान की बिक्री भी की गई.
पैकेज में सऊदी अरब के निवेश को अमेरिकी उद्योग में लाने के लिए सेक्टोरल फंड्स बनाने की भी बात है. इसमें ऊर्जा क्षेत्र के लिए पाँच अरब डॉलर, एयरोस्पेस और डिफ़ेंस टेक्नोलॉजी के लिए 5 अरब डॉलर और ग्लोबल स्पोर्ट्स के लिए चार अरब डॉलर का फंड बनाने की बात है.
खनन और खनिज संसाधनों, ऊर्जा और एयरोस्पेस में सहयोग के लिए भी मेमोरेंडम ऑफ़ अंडरस्टैंडिंग (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए गए.
सऊदी अरब बनाम ईरान
बीते एक दशक में सऊदी अरब ने एक क्षेत्रीय सैन्य ताक़त के तौर पर अपने आप को मज़बूत करने के लिए आधुनिक हथियारों में अरबों डॉलर का निवेश किया है.
जानकारों के मुताबिक, अमेरिका के साथ हुई मेगा डील, ख़ासतौर पर 142 अरब डॉलर के हथियारों की बिक्री वाले समझौते ने सऊदी के आधुनिकीकरण का रास्ता साफ़ किया है. साथ ही इस समझौते से अमेरिका के साथ उसकी रणनीतिक साझीदारी भी गहरी हुई है, जो रक्षा सहयोग पर केंद्रित है.
पेंटागन के पूर्व अधिकारी और वॉशिंगटन इंस्टीट्यूट थिंक टैंक के सीनियर फेलो ग्रांट रमली ने बीबीसी मुंडो से कहा, "सऊदी अरब ने हाल के सालों में अपनी सैन्य क्षमताएं विकसित करने में प्रगति की है, ख़ासतौर पर एयर डिफ़ेंस के क्षेत्र में. "
रमली यमन में हूती विद्रोहियों के साथ जारी संघर्ष में सऊदी अरब को मिली प्रगति का हवाला देते हैं, जहां लगातार सऊदी अरब की वायु रक्षा प्रणाली की परीक्षा हुई है.
उन्होंने कहा कि अमेरिका के साथ नए समझौते का उद्देश्य 'अब तक मिली इस प्रगति को और मज़बूत करना, दोनों देशों के बीच वाणिज्यिक और रक्षा संबंधों को मज़बूत करना और सऊदी अरब के क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धियों, ख़ासतौर पर ईरान को प्रतिरोध का संदेश देना है.'
सऊदी अरब और ईरान के बीच प्रतिद्वंद्विता सालों से मध्यपूर्व के भूराजनीतिक परिदृश्य और मौजूदा समय में इस क्षेत्र में हो रहे संघर्षों को प्रभावित करती रही है.
विश्लेषक डैनियल डिपेट्रिस कहते हैं कि एक ओर सऊदी अरब अत्याधुनिक पश्चिमी सैन्य तकनीकें हासिल करने में जुटा हुआ है, ख़ासतौर पर अमेरिकी तकनीकी. वहीं, ईरान खुद पर लगे प्रतिबंधों की वजह से अपने आप ही क्षमताएं विकसित कर रहा है.
उन्होंने कहा, "ईरान अब भी क्षेत्र में अपनी ताक़त दिखाने और अपने हितों की रक्षा करने वाली नीति पर चल रहा है. ये आंशिक रूप से ज़रूरी भी है क्योंकि अमेरिकी प्रतिबंधों ने ईरान को पश्चिमी सैन्य प्रौद्योगिकी तक पहुंच से रोक दिया है."
वह विस्तार से बताते हैं कि मौजूदा शर्तों पर सीधे-सीधे प्रतिस्पर्धा करने के बजाय ईरान ने सस्ते लेकिन असरदार स्वदेशी मिसाइलें, ड्रोन और अन्य ज़रूरी उपकरणों में निवेश किया है.
डिपेट्रिस कहते हैं, "दूसरी ओर सऊदी अरब के पास कोई व्यापक घरेलू डिफ़ेंस इंडस्ट्री नहीं है. लेकिन उनके पास हर साल अरबों डॉलर के पश्चिमी हथियार खरीदने के लिए पैसे हैं."
डिपेट्रिस का कहना है कि ऐसी स्थिति में सैन्य शक्ति सिर्फ़ और सिर्फ़ हथियारों की गुणवत्ता के आधार पर नहीं आंकी जा सकती.
उन्होंने कहा, "सऊदी अरब की समस्या रक्षा उपकरणों की कमी नहीं है बल्कि अतीत में उसने इनका जिस तरह इस्तेमाल किया है, वो है. अगर उसकी रणनीति में खामियां हैं या अति महत्वाकांक्षी है तो फिर अच्छे से अच्छे लड़ाकू जेट या मिसाइलें भी इनकी भरपाई नहीं कर सकतीं."
इस संबंध में उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा कि अमेरिका के साथ हुई नई मेगा डील में न केवल सऊदी अरब को बहुत सारे रक्षा उपकरण देने की बात कही गई है, बल्कि उसे इन्हें चलाने और इससे जुड़ी रणनीतिक क्षमताएं भी दी जाएंगी. इससे वह इन संसाधनों का असरदार तरीके से इस्तेमाल कर सकेगा.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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