जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए चरमपंथी हमले के बाद कुछ दिनों तक सन्नाटे का माहौल है, हालांकि कुछ सैलानियों ने यहां आना शुरू कर दिया है.
हमले के एक दिन बाद पहलगाम का जो बाज़ार पूरी तरह बंद हो गया था अब धीरे-धीरे खुलने लगा है. लेकिन ये कहना जल्दबाज़ी होगी कि पहलगाम में हालात सामान्य हो गए हैं.
पहलगाम जैसी जगहों की अर्थव्यवस्था पर्यटन पर ही निर्भर करती है और यहां के लोगों की बड़ी चिंता यही है कि सैलानियों के यहां ना आने से कई लोगों की आजीविका पर बहुत बुरा असर पड़ सकता है.
शहर से कुछ ही दूरी पर एक "सेल्फ़ी पॉइंट" है, जहां से हरे-भरे घास के मैदान और बहती नदी नज़र आती है. इसी जगह पर हमें कुछ सैलानी मिले जो हमले कुछ ही दिन बाद पहलगाम पहुंचे.

मुंबई से आए एक पर्यटक अक्षय सोलंकी ने कहा कि हमले के दिन उनके ग्रुप में "घबराहट" थी.
उन्होंने कहा, "जब ये हमला हुआ, उस वक़्त हम गुलमर्ग में थे. उसके बाद हमारे ग्रुप में काफ़ी तनाव हो चुका था कि हमें यहां से निकलना है. मंगलवार को जब हमला हुआ उस रात चार बजे तक हमने फ्लाइट टिकट बुक करने की कोशिश की, पर फ्लाइट टिकट के रेट बहुत बढ़ चुके थे."
"हमने ख़ुद को मज़बूत किया और सोचा कि देखते हैं क्या होता है. होटल वालों ने भी हमें बहुत सपोर्ट किया. हम डरे नहीं."
पहलगाम पहुँच रहे सैलानियों में बहुत से ऐसे हैं जो पिछले कुछ दिनों से कश्मीर घाटी के अन्य इलाक़ों में सैर-सपाटा कर रहे थे. लेकिन कुछ सैलानी ऐसे भी हैं जिन्होंने पहलगाम हमले के बाद यहां आने का मन बनाया.
हैदराबाद के संतोष कुमार ऐसे ही एक सैलानी हैं. वे कहते हैं, "माहौल अच्छा है. मौसम भी अच्छा है. तो हम यहां आने की कोशिश कर पाए. थोड़ा मन में डर है मगर हम उससे निपट सकते हैं."
नागपुर से आई पायल कहती हैं, "सब लोग यहां पर आ सकते हैं. यहां का माहौल सुरक्षित है. डरने की कोई बात नहीं है यहां पर. अभी सिक्योरिटी दुरुस्त है यहां की. तो आ सकते हैं सब. कश्मीर बहुत अच्छा है."
पुणे से पहलगाम आई फ़ायज़ा ने कहा, "ये ट्रिप प्लान करना इतना आसान नहीं होता है. ट्रिप प्लान करने के लिए काफ़ी महीने पहले बुकिंग्स करनी पड़ती है, काफ़ी सेविंग्स होती है और फिर जाकर यहाँ हम लोग आते हैं. जहां हमला हुआ, वो चीज़ दिमाग़ में रहती है लेकिन यहाँ के लोगों का सहयोग ही इतना अच्छा है कि हमें डर महसूस ही नहीं हुआ."
कई पर्यटकों ने कहा कि स्थानीय लोगों और सुरक्षा बलों से लगातार मिल रहे आश्वासनों से उन्हें राहत मिली है. श्रीनगर से पर्यटकों को पहलगाम लाने वाले ड्राइवर मोहम्मद इस्माइल ने कहा कि वह पर्यटकों से कश्मीर से "दूरी" न बनाने की अपील कर रहे हैं.
मोहम्मद इस्माइल ने कहा, "रोज़ी रोटी चलना चाहिए. बाक़ी किसी से कोई लेन-देन नहीं है. हम ड्राइवर हैं, मेहनत करते हैं, शाम को बच्चों को खिलाते हैं. प्लीज़ रिक्वेस्ट कर रहे हैं हम, हमको अलग मत कीजिये. हम इंडिया हैं, इंडिया के साथ हैं. जहां से भी लोग आएं, जिस भी धर्म के वो हों, हम उनके साथ है."
पहलगाम हमले के बाद तक़रीबन सभी पर्यटक यहां से चले गए थे. इसका सीधा असर उन लोगों पर पड़ा जिनका रोज़गार पर्यटन उद्योग से जुड़ा है.

रफ़ी अहमद पहलगाम में शॉल बेचने का काम करते हैं. उन्होंने कहा कि पिछले दिनों वह केवल कुछ शॉल ही बेच पाए हैं और उन्हें डर है कि अगर पर्यटकों का आना बंद हो गया तो भविष्य में उनकी रोज़ी-रोटी पर मुसीबत आ जाएगी.
उन्होंने कहा, "हमले के बाद माहौल बहुत ख़राब रहा है. रोज़गार पर बहुत असर पड़ा है. पिछले कुछ दिनों से टूरिस्ट यहां आए नहीं. आज थोड़े थोड़े आने लगे हैं तो बहुत फ़र्क पड़ गया है. हमारा शॉल का काम है. हमारा रोज़गार सैलानियों से जुड़ा है और इनकी वजह से ही चलता है. मुझे उम्मीद है और टूरिस्ट यहां आएंगे."
हमारी मुलाक़ात पहलगाम के पूर्व विधायक रफ़ी अहम मीर से हुई.
उन्होंने कहा कि पहलगाम के लोगों के लिए सैलानी सबसे पहले हैं और लोगों का ये सोचना है कि सैलानी सुरक्षित रहें भले ही उन्हें निशाना बनाया जाए.
मीर कहते हैं, "इस वक़्त जो सूरत-ए-हाल है, एक दाग़ सा लगा है हम पर. इस दाग़ को कैसे साफ़ किया जाए हम वो सोच रहे हैं. इसके लिए हमें इकट्ठे होने की ज़रूरत है. इस दाग़ को मिटाना बहुत मुश्किल है."
मीर ने कहा, "लेकिन मैं समझता हूँ कि अगर लोगों ने हमारा पैगाम समझा.. यहां शहीद आदिल की तरह लोग थे और वो लोग भी जिन्होंने लाशों को उठाया.. जख्मियों का मरहम किया. अगर हम इसे समझने की कोशिश करेंगे तो दाग़ जल्दी मिट सकता है. हम अपने दुश्मन को नाकाम होते देखना चाहते हैं."
हमले के बाद पहलगाम पहुँचने वाले सैलानियों में फ़िल्म अभिनेता अतुल कुलकर्णी भी थे.
बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा कि वो सोच रहे थे कि सोशल मीडिया पर लिख देने या बोल देने के अलावा वो क्या कर सकते हैं.
उन्होंने कहा, "मैंने ये भी पढ़ा कि यहां आने वालों की 90 प्रतिशत बुकिंग्स कैंसिल हो गई हैं, हालांकि यहां अभी पीक सीज़न है. कश्मीरियत जो है, वो हमें संभालनी पड़ेगी. कश्मीरी जो लोग हैं, उन्हें हमें संभालना है."
"टूरिज़्म सिर्फ़ टूरिज़्म नहीं होता, सिर्फ़ पैसों की बात नहीं होती. टूरिज़्म का मतलब है कि लोग जुड़ते हैं एक दूसरे से. इतनी बड़ी तादाद में लोग यहां आ रहे थे पिछले एक दो सालों में. अचानक से अगर रुक गए हम लोग तो एक जो संबंध बन रहा है मेनलैंड और कश्मीर का.. तो मेरे ख़्याल से वो रुकना नहीं चाहिए."
कुलकर्णी ने कहा कि वो एक संदेश देने पहलगाम आए हैं. उन्होंने कहा, "आतंकवादियों ने हमें संदेश दिया कि यहां मत आइए, तो नहीं भैया हम तो आएंगे. हमारा कश्मीर है, हम तो आएंगे. बड़ी तादाद में आएंगे. मेरी यही दरख़्वास्त है लोगों से कि बुकिंग कैंसल मत कीजिये."
अतुल कुलकर्णी ने कहा, "यहां आइए. यह बहुत सुरक्षित है. अगर आपने कहीं और जाने का प्लान बनाया हो तो वो कैंसल करके यहां आ जाइए. लेकिन कश्मीर आ जाइए. कश्मीरियत को संभालना ज़रूरी है. कश्मीरियों से प्यार करना ज़रूरी है. यहां मुस्कराहट और प्यार लाना ज़रूरी है."
अनिश्चितता के बीच पहलगाम के लोग इसी इंतज़ार में हैं कि हालात सामान्य हो जाएँ और उनकी ज़िंदगी और रोज़गार पटरी पर लौट आए.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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