बीते रविवार यानी तीन मई की शाम को लंदन में 'यूके एशियन फ़िल्म फ़ेस्टिवल' में निर्माता शूजित सरकार की फ़िल्म 'द उमेश क्रॉनिकल्स' का प्रीमियर था.
इस फ़िल्म में अमिताभ बच्चन और दिवंगत इरफ़ान ख़ान के होनहार माने जा रहे बेटे बाबिल ख़ान का छोटा मगर अहम रोल है.
फ़िल्म में एक मार्मिक सीन में अमिताभ और बाबिल आमने-सामने आते हैं. डायलॉग नहीं है मगर वो सीन एक एहसास था, जिसने फ़िल्म पीकू में अमिताभ-इरफ़ान के सीन की याद दिला दी.
स्क्रीनिंग के बाद निर्देशिका पूजा कौल के साथ मेरी बातचीत हुई तो उन्होंने बाबिल की तारीफ़ करते हुए कहा कि अपने पिता इरफ़ान की ही तरह, वो बेहद गहरे और प्रतिभाशाली हैं.
मगर ठीक उसी रात को, घर लौटते वक़्त, मैंने बाबिल का वो वीडियो देखा जो अब हर तरफ़ वायरल है.
ये वो बाबिल नहीं थे
इस वायरल वीडियो को देखकर एक झटका-सा लगा. ये वो बाबिल नहीं थे जो कुछ घंटे पहले पर्दे पर चमक रहे थे और उम्मीद जगा रहे थे. ये कोई और था टूटा हुआ, बिखरा हुआ सा.
वीडियो में बाबिल तक़रीबन इमोशनल ब्रेकडाउन की हालत में, बॉलीवुड के लिए बेहद सख़्त और तीखे शब्द इस्तेमाल कर रहे थे. उनकी हर बात जैसे कोई अंदरूनी घाव उजागर करती महसूस हो रही थी.
वीडियो में कांपती आवाज़ में वो कहते हैं, "बॉलीवुड सबसे फ़ेक इंडस्ट्री है.. मैं इसका हिस्सा रहा हूं. मैं आपको बहुत कुछ दिखाना चाहता हूं. बहुत कुछ. मेरे पास आपको देने के लिए बहुत कुछ है. ये कहते ही बाबिल फूट-फूटकर रोने लगते हैं."
फिर वो कुछ दूसरे नौजवान एक्टर्स के नाम लेते हैं- 'अनन्या पांडे, शनाया कपूर, अर्जुन, आदर्श गौरव, राघव जुयाल..' जैसे कोई भीतर का बोझ उतार रहा हो.
वीडियो वायरल हुआ, हंगामा मचा, तो कुछ ही घंटों में सफ़ाई पेश करते हुए बाबिल की टीम और परिवार की तरफ से एक साझा बयान जारी किया गया, जिसमें बाबिल के वीडियो का मतलब साफ़ करने की कोशिश की गई.
स्टेटमेंट में कहा गया है, "बाबिल मेंटल हेल्थ पर खुलकर बात करते रहते हैं. उन्हें भी कभी बुरा महसूस करने की आज़ादी है, ये भी उनका बुरा दिन था. हम सबको तसल्ली देना चाहते हैं वो अब सेफ़ हैं और जल्द ठीक हो जाएंगे."
साथ ही बयान में कहा गया कि बाबिल ने फिल्म इंडस्ट्री या अर्जुन कपूर-अनन्या पांडे के लिए अपशब्द नहीं कहे, बल्कि वो उनकी तारीफ़ कर रहे थे. फिर बाबिल ने भी इंस्टाग्राम पर वापस आकर अपनी तरह से सफ़ाई दी और माफ़ी मांगने की कोशिश की.

इस मामले में बुनियादी रूप से दो सवाल सबसे ज़्यादा अहम हैं. पहला- नेपोटिज़्म की बहस, जो एक बार फिर सिर उठाकर खड़ी हो गई है.
बाबिल ने जिन नामों का ज़िक्र किया, उनमें ज़्यादातर फ़िल्मी परिवारों से हैं. तो क्या बाबिल उस "कैंप" का हिस्सा नहीं बन पाए और यही उनकी मुश्किलों का कारण है?
दूसरा सवाल बाबिल की मानसिक स्थिति से जुड़ा हुआ है. वीडियो देखने के बाद कई लोगों ने कहा, ये सिर्फ़ ग़ुस्सा नहीं था बल्कि एक टूटा हुआ मन था, जो मदद के लिए पुकार रहा था. सोशल मीडिया पर लोग उनके लिए फ़िक्रमंद हो उठे. सवाल पूछे जा रहे हैं- क्या बाबिल अंदर ही अंदर घुट रहे हैं?
इस वीडियो से उठे हंगामे को समझने के लिए इन्हीं दो सवालों पर बात करना ज़रूरी है.
वायरल वीडियो के बाद कई लोग कह रहे हैं कि बाबिल बॉलीवुड के कैंप्स और भाई-भतीजावाद से टूटे हैं. लेकिन इस बहस में एक कड़वी सच्चाई ये भी है कि बाबिल ख़ुद उसी व्यवस्था का हिस्सा हैं.
बाबिल ख़ुद भी उसी नेपोटिज़्म से फ़ायदा उठा चुके हैं. वो एक मशहूर एक्टर इरफ़ान के बेटे हैं.
वो इरफ़ान जिन्होंने वर्षों तक कड़ा संघर्ष किया और तब जाकर अपना मका़म बना पाए. शायद उसी विरासत के चलते बाबिल को इंडस्ट्री में वो शुरुआती जगह मिली, जो सैकड़ों प्रतिभावान कलाकारों को सालों की मशक्कत के बाद भी नहीं मिलती.
बात ये नहीं कि नेपोटिज़्म नहीं है. बात ये है कि क्या हम हर उलझन की जड़ वहीं तलाशते रहेंगे?
ये बात सही है कि सिनेमा की दुनिया को मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को लेकर संवेदनशील होना चाहिए, लेकिन दुर्भाग्यवश हमारा पूरा समाज ही इस संवेदनशीलता से बहुत दूर है. और फ़िल्म इंडस्ट्री जो पहले ही भारी दबाव, अनिश्चितता और लगातार तुलना से भरी दुनिया है, वो मानसिक स्वास्थ्य के लिहाज़ से एक बेहद चुनौतीपूर्ण जगह बन जाती है.
सच्चाई यही है कि यह इंडस्ट्री हमेशा से ही कड़ी प्रतिस्पर्धा से भरी रही है और शायद आगे भी रहेगी. इसलिए बाबिल के हालिया व्यवहार को सिर्फ़ इंडस्ट्री की साज़िशों या भाई-भतीजावाद के चश्मे से देखना ग़लत होगा.
कुछ ही वर्ष पहले अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या ने बॉलीवुड के उस अंधेरे पक्ष को उजागर किया, जिसे अक्सर नज़रअंदाज़ किया जाता है यानी मानसिक स्वास्थ्य की चुनौतियां.
उस एक घटना ने इस इंडस्ट्री की चमक-दमक के पीछे छिपे दबाव और डिप्रेशन के मुद्दे को चर्चा में ला दिया था.
हालांकि, सुशांत की मौत पर मीडिया की बेकाबू और असंवेदनशील कवरेज़ ने खुद कई सवाल खड़े कर दिए थे. अब, उसी रोशनी में जब बाबिल ख़ान कैमरे के सामने बिलखते हैं, तो यह सिर्फ़ भावुक नहीं बल्कि डरावना लगता है.
मुंबई में जन्मे 26 वर्षीय बाबिल अपने पिता अभिनेता इरफ़ान और स्क्रीन राइटर मां सुतपा सिकदर के चलते बचपन से ही फिल्म इंडस्ट्री की हक़ीक़त और यहां होने वाले कठिन संघर्ष के गवाह रहे हैं.
वो लंदन की वेस्टमिंस्टर यूनिवर्सिटी में ग्रेजुएशन करने गए थे. उसी समय साल 2020 में इरफ़ान की कैंसर से असमय मौत हुई. इस सदमे ने बाबिल को भीतर से तोड़ दिया था. मगर दर्द से बाहर निकलते हुए, बाबिल ने तय किया कि अब वो भी अपने पिता की तरह अभिनेता बनेंगे.
उन्हें जल्द ही पहला मौक़ा मिला साल 2022 में नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुई फ़िल्म 'कला' में. इस फ़िल्म में बाबिल ने एक संवेदनशील गायक की भूमिका निभाई .
उनके स्वाभाविक अभिनय और ख़ामोश गहराई ने दर्शकों को इरफ़ान की याद दिला दी. शायद यही वजह थी कि मीडिया और दर्शकों ने उन्हें खुलकर सराहा.
शायद उनके पिता इरफ़ान के लिए प्यार और सहानुभूति थी जिसकी वजह से मीडिया ने भी बाबिल को हाथों हाथ लिया. अपने इंटरव्यू में बाबिल लगातार इरफ़ान को याद करते रहे, खुलकर कहते रहे- "मैं जो कुछ भी हूं, उन्हीं की वजह से हूं."
साल 2023 में वो अभिनेत्री जूही चावला के साथ फ़िल्म 'फ्राइडे नाइट प्लान' में नज़र आए. इसी साल यशराज फ़िल्म्स की चर्चित वेब सीरीज़ 'द रेलवे मैन' में भी बाबिल की अहम भूमिका थी.
भोपाल गैस त्रासदी पर बनी इस सीरीज़ में, केके मेनन और आर माधवन जैसे दिग्गजों के बीच भी बाबिल अपनी असरदार मौजूदगी दर्ज करवा गए.
आइफ़ा अवॉर्ड्स (साल 2023) में बाबिल को 'स्टार डेब्यू ऑफ़ द इयर' के अवॉर्ड से भी नवाज़ा गया.
शूजित सरकार जैसे निर्देशकों ने उन्हें अपनी आगामी फ़िल्मों के लिए साइन किया. पिछले महीने की ज़ी फ़ाइव पर उनकी मुख्य भमिका वाली थ्रिलर फिल्म लॉगआउट रिलीज़ हुई, जिसमें उनके अभिनय की तारीफ़ हो रही है.
लेकिन इस उम्मीद भरे आगाज़ के बावजूद, बाबिल अभिनय से अलग, अपनी निजी उलझनों और बेचैनियों की वजह से भी ख़ूब चर्चा में रहे.
पिछले साल (दिसंबर 2024), लखनऊ में एक इवेंट में बोलते हुए बाबिल की मां और पटकथा लेखिका सुतपा सिकदर ने कहा था कि बाबिल पर इस क़दर दबाव है कि वो लगभग डिप्रेशन की हालत में पहुंच चुके थे.
उन्होंने कहा था, "बाबिल पर बहुत दबाव है, और मुझे ये बिलकुल ठीक नहीं लगता. यह दबाव नहीं होना चाहिए, इरफ़ान पर कभी भी वह दबाव नहीं था. जब आप ख़ुद पर कोई दबाव नहीं डालते हैं, तो आपका व्यक्तित्व निखर कर सामने आता है. यह केवल काम के बारे में नहीं है, बल्कि पिता को खोने के बारे में भी है, वो लगभग डिप्रेशन में हैं."
"हर समय इस तनाव और दबाव के साथ. एक माँ के रूप में, मुझे लगता है, 'कृपया मेरे बच्चे को अकेला छोड़ दो.' इसके अलावा, वो बहुत कमज़ोर हैं और उसमें लड़ने की भावना नहीं है. उनके पिता बहुत मज़बूत थे और मैं भी हूं."
बाबिल की मां सुतपा सिकदर की ये बात इशारा करती है कि अपने पिता को खोने के सदमे के साथ बाबिल मानसिक उलझनों से भी जूझ रहे हैं. ऊपर से बॉलीवुड जैसी बेहद प्रतिस्पर्धी दुनिया में ख़ुद को साबित करने का दबाव शायद उन्हें अंदर ही अंदर और तोड़ रहा है.
17 अप्रैल को हिंदुस्तान टाइम्स को दिए वीडियो इंटरव्यू में बाबिल ख़ुद स्वीकार कहते हैं, "मैं इंडस्ट्री में अपना दिल और बांहें खोलकर आया था, लेकिन एक व्यक्ति के रूप में इसने मुझे वास्तव में तोड़ दिया. इसने मुझे बहुत आहत किया. मैंने बहुत दर्द और परेशानियों का सामना किया."
फिर हाल ही में अभिनेत्री हुमा कुरैशी के साथ भी बाबिल का एक वीडियो वायरल हुआ था. जिसमें अभिनेता बाबिल और अभिनेत्री हुमा कुरैशी के बीच कैमरे के सामने एक असहज बातचीत होती दिखती है.
वीडियो में बाबिल एक टूटे हुए, उलझे हुए नौजवान की तरह हुमा से सवाल करते हैं, "उसने मेरा फ़ोन भी नहीं उठाया?" हुमा जवाब देने से बचती हैं, कहती हैं- "इस बारे में हम बाद में बात करेंगे."
मगर बाबिल रुकते नहीं और एक बार फिर मासूम-सी बेचैनी में पूछते हैं, "क्या वो मुझसे ग़ुस्सा है?" हुमा थोड़ी असहज होकर कहती हैं—"मुझे नहीं पता."
फिर तेज़ी से आगे बढ़ जाती हैं और माइक से दूर जाकर कहती हैं, "इस लड़के को थप्पड़ मारने का मन करता है." वीडियो में जो सबसे ज़्यादा ध्यान खींचता है, वो है बाबिल की निजी हताशा का सार्वजनिक रूप से छलकना.
कैमरे के सामने ये संवाद एक ऐसे अभिनेता की तस्वीर पेश करते हैं, जो भावुक दिखता है.
और फिर आया रविवार का ये वायरल इंस्टाग्राम वीडियो जहां बाबिल फूट-फूटकर रोते नज़र आए.
बाबिल के वीडियो के वायरल होने के बाद अनन्या पांडे और राघव जुयाल ने बाबिल के सपोर्ट में पोस्ट की तो अभिनेता हर्षवर्धन राणे ने उन्हें नशे और हर आफ्टर पार्टीज़ से दूर रहने की सलाह दी.
मगर बाबिल की हालत इशारा करती है कि यह सिर्फ़ एक वायरल वीडियो नहीं, एक संकेत है कि बाबिल मदद मांग रहे हैं. लेकिन ये मदद जो सोशल मीडिया की लाइक्स या कमेंट्स से नहीं मिल सकती. बल्कि पेशेवर काउंसलरों, संवेदनशील सहयोगियों और निजी स्पेस में ही मिल सकती है. परिवार और उनकी टीम की प्राथमिकता सबसे पहले यही होनी चाहिए.
क्या ये बेहतर नहीं होगा कि बाबिल को फ़िल्मों की तेज़ रफ्तार दौड़ से कुछ देर के लिए अलग होकर ख़ुद को सहेजने का मौका मिलना चाहिए? एक ठहराव, जो उनके करियर के ख़िलाफ़ नहीं, बल्कि उनके इंसान बने रहने के लिए ज़रूरी है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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