राजस्थान विधानसभा के संविधान क्लब में रविवार को एक खास माहौल देखने को मिला, जब भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व प्रदेशाध्यक्ष डॉ. सतीश पूनिया की पहली पुस्तक का विमोचन समारोह आयोजित किया गया। यह कार्यक्रम केवल साहित्यिक नहीं, बल्कि सियासी रंगों से भी सराबोर रहा। पुस्तक विमोचन के दौरान नेताओं के बीच हुई "सांप-सीढ़ी" की बयानबाजी ने पूरे आयोजन को राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बना दिया।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में भाजपा प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ ने अपने संबोधन में हाज़िरजवाबी और व्यंग्य का ऐसा तड़का लगाया कि सभा में मौजूद लोग ठहाके लगाने पर मजबूर हो गए। उन्होंने कहा कि राजनीति भी किसी सांप-सीढ़ी के खेल से कम नहीं है—कभी सीढ़ियाँ ऊपर चढ़ा देती हैं तो कभी साँप नीचे गिरा देता है। उनके इस बयान ने न केवल माहौल को हल्का-फुल्का बना दिया, बल्कि एक गहरी राजनीतिक टिप्पणी भी छोड़ दी।
मदन राठौड़ ने अपने संबोधन में पूर्व मंत्री राजेंद्र राठौड़ और कांग्रेस नेता टीकाराम जूली के हालिया बयानों का ज़िक्र करते हुए चुटकी ली। उन्होंने कहा कि “राजेंद्र राठौड़ और टीकाराम जूली दोनों ही सियासी साँप के डसने के शिकार हो चुके हैं।” उनके इस व्यंग्यात्मक टिप्पणी पर सभा में ठहाकों की गूंज उठी, लेकिन साथ ही राजनीतिक हलकों में इस पर गंभीर चर्चा भी शुरू हो गई। राठौड़ का यह इशारा किस ओर था, इसे लेकर अब विभिन्न राजनीतिक गलियारों में अटकलों का दौर जारी है।
सतीश पूनिया की पुस्तक का विमोचन भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए गर्व का क्षण रहा। पूनिया ने अपने राजनीतिक जीवन के अनुभवों, संघर्षों और विचारों को इस पुस्तक में संजोया है। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि राजनीति एक सतत प्रक्रिया है, जहाँ हर मोड़ पर धैर्य और विवेक की परीक्षा होती है। पूनिया ने यह भी कहा कि राजनीति में “सांप और सीढ़ी” दोनों का होना स्वाभाविक है, लेकिन सच्चा नेता वही है जो हर गिरावट के बाद फिर से उठ खड़ा होता है।
कार्यक्रम में कई वरिष्ठ नेताओं, कार्यकर्ताओं और पत्रकारों की उपस्थिति रही। विमोचन समारोह के बाद नेताओं के बीच आपसी संवाद और हंसी-मज़ाक का दौर भी चला, लेकिन “सांप-सीढ़ी” वाले बयान ने पूरे आयोजन को एक नया राजनीतिक एंगल दे दिया।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मदन राठौड़ का यह बयान केवल मज़ाक नहीं, बल्कि आने वाले समय में राजस्थान की सियासत की दिशा का संकेत भी हो सकता है। भाजपा और कांग्रेस, दोनों ही दलों में इस बयान को लेकर अलग-अलग व्याख्याएँ की जा रही हैं।
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